महाप्रयाग | Mahaprayag

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Mahaprayag by सीताराम गोस्वामी -Seetaram Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महा-प्रयाग्प डे सौदम्पटन से तार दिया था, सन्त्या श्राठ बजे ब्ापसे मिलने आ्ाये । गांधी जी को फ्लानेल में देग्वकर डा० मेहता मुस्कराये | वह शनिवार का दिन था | डा० मेहता ने आपने बताया कि दोटल में अत्यधिक स्वच्च पड़ता है । सोमवार को आप श्रौर पके सदयात्री जुनागढ़ के वकील श्री युत मजुम गर वहां से हटकर दूसरे कमरे में रहने चते गये । उनके एक सिंधी मित्र ने उनके लिए यद कमरा ले ग्स्वा था । किन्तु बहां भी शाप को शान्ति न थी । अपने घर श्रीर देश की याद दी इन्हें सदा सताती रहती | मां का प्यार इन्हें थरबस व्याकु कर दे । हर रात ये रोते रहते, घर की र्मूतिया इन्हें कर्मी सोने नहीं दें । <:ग्रेज़ी शिप्राचार से श्राप बिलकुल नमिज्ञ थे । प्रत्येक पल इन्हें सतक॑ रहना पड़ता । निरा- मिष भोजन की प्रतिज्ञा इनके लिए एक अतिरिक्त ऑसुविधा थी | इंगलेंड श्रापके लिए. श्रसह्य था, पर भारत लौटने का विचार भी मुमकिन नहीं | श्र जब -श्रा गए थे तो तीन व समाप्त कर जाना उचित था । एक अंग्रेज भद्र पुरुष भोजन की समस्या इनके लिये श्रत्यधघिक कठिन थी । एक मित्र मांस खाने के लिए. निरन्तर श्ापसे बस करते श्र आप बराबर अपनी प्रतिज्ञा का हवाला दे चुप रह जाते । इनका मित्र जितना ही इनसे तक करता, इनका विरोध उतना ही प्रबल होत। । नित्य ही श्रपनी प्रतिज्ञा के रच्ताथ अप भगवान से प्राथना करते । ऐसी बात नहीं कि इन्हें भगवान का कोई ज्ञान हो, पर एक विश्वास था. जो बल देता गया । भाई रम्भा से ही श्रापकों यह विश्वास मिज्ञा था । दिन-प्रतिदिन 'निरामिषत? में श्रापका विश्वास बढ़ता ही गया । इसी बीच झ्ापने इस विषय की कई पुस्तक खरीद ली थीं । इनमें भोजन! सम्बन्धी 'सुधार लाने की जो इनके मित्रों का प्रयास था एवं उनमें जो प्यार निहित था, अ्राप प्रशंसा करते थे । आपने निणुय किया कि निरामिष भोजन के श्रतिरिक्त एक




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