महाप्रयाग | Mahaprayag
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महा-प्रयाग्प डे
सौदम्पटन से तार दिया था, सन्त्या श्राठ बजे ब्ापसे मिलने आ्ाये ।
गांधी जी को फ्लानेल में देग्वकर डा० मेहता मुस्कराये | वह शनिवार
का दिन था | डा० मेहता ने आपने बताया कि दोटल में अत्यधिक स्वच्च
पड़ता है । सोमवार को आप श्रौर पके सदयात्री जुनागढ़ के वकील श्री
युत मजुम गर वहां से हटकर दूसरे कमरे में रहने चते गये । उनके एक
सिंधी मित्र ने उनके लिए यद कमरा ले ग्स्वा था । किन्तु बहां भी शाप
को शान्ति न थी । अपने घर श्रीर देश की याद दी इन्हें सदा सताती
रहती | मां का प्यार इन्हें थरबस व्याकु कर दे । हर रात ये रोते
रहते, घर की र्मूतिया इन्हें कर्मी सोने नहीं दें । <:ग्रेज़ी शिप्राचार से
श्राप बिलकुल नमिज्ञ थे । प्रत्येक पल इन्हें सतक॑ रहना पड़ता । निरा-
मिष भोजन की प्रतिज्ञा इनके लिए एक अतिरिक्त ऑसुविधा थी | इंगलेंड
श्रापके लिए. श्रसह्य था, पर भारत लौटने का विचार भी मुमकिन नहीं |
श्र जब -श्रा गए थे तो तीन व समाप्त कर जाना उचित था ।
एक अंग्रेज भद्र पुरुष
भोजन की समस्या इनके लिये श्रत्यधघिक कठिन थी । एक मित्र मांस
खाने के लिए. निरन्तर श्ापसे बस करते श्र आप बराबर अपनी
प्रतिज्ञा का हवाला दे चुप रह जाते । इनका मित्र जितना ही इनसे तक
करता, इनका विरोध उतना ही प्रबल होत। । नित्य ही श्रपनी प्रतिज्ञा के
रच्ताथ अप भगवान से प्राथना करते । ऐसी बात नहीं कि इन्हें भगवान
का कोई ज्ञान हो, पर एक विश्वास था. जो बल देता गया । भाई
रम्भा से ही श्रापकों यह विश्वास मिज्ञा था । दिन-प्रतिदिन 'निरामिषत?
में श्रापका विश्वास बढ़ता ही गया । इसी बीच झ्ापने इस विषय की
कई पुस्तक खरीद ली थीं । इनमें भोजन! सम्बन्धी 'सुधार लाने की जो
इनके मित्रों का प्रयास था एवं उनमें जो प्यार निहित था, अ्राप प्रशंसा
करते थे । आपने निणुय किया कि निरामिष भोजन के श्रतिरिक्त एक
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