हिंदी साहित्य | Hindi Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.7 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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No Information available about पं गणेशप्रसाद द्विवेदी - Pt. Ganeshprasad Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३ 4 _ झानैचाले अधिकांश शब्द ऐसे हैं जिनसे मिलते जुलते हुए बहुत _ से शब्द पशिया तथा यूरप की सिनन-निन्न साषाओं में मिलते हैं । पिता माता भ्राता झादि शब्द सामान्य उच्चारण भेद से संस्कृत प्रीक लेटिन तथा फारसी आदि भाषाओं में ज्यों के त्यों पाये जाते हें । आदिम स्थान से जहाँ पक साथ दी रहती थी होते होते लोगों को स्थाना- भाव होने लगा और अन्यत्र जाने की झावश्यकता पड़ी । कुछ लोग जो पश्चिम की ओर चले ईरान श्र . तुर््किस्तान होते हुए यूरप पहुँचे श्रौर वहाँ यूनानी लेटिन जर्मन तथा अंग्रेज़ी आदि भाषाओं की उत्पत्ति हुई और कुछ लोग दक्षिणपूव की द्ोर चले आर अफगानिस्तान होते हुए खिन्थघु नदी के किनारे पहुँचे । आ्राया का जा दल पंजाब में श्ाकर वस गया उसी की परिमाजिंत शोषा का नाम संस्कृत है। परन्तु स्मरण रहे कि पहले ही से इस भाषा का नाम संस्कृत नहीं था । संस्कृत नाम तो उसका उस संशय हुआ जब बैयाकरणों ने उसको परिमाजिंत करके भी भाँति नियमवद्ध कर। दिया । संस्कृत शब्द का श्रर्थ दी परिमाजिंत 7८०८८ १ है। पहले जिस भापा में हमारे पू्वज्ञ वात चीत करते थे वह प्राकृत कही जाती थी और वेद की भाषा देववाणी कद्दी जाती थी। मदद्षि पतज्नलि का कहना है कि यह देववाणी थी श्र न तो यह सबसाधारण के समभ में श्रा सकती थी
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