संक्षिप्त हिन्दी - नवरत्न | Sankshipt Hindi Navaratn

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Sankshipt Hindi Navaratn by दुलारेलाल - Dularelal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ११ भूषण ने जातीयता का संदेश दिया भर उसे कहा भी अच्छा है । ्ापकी जञातीयता में भारतीयता का भाव कम झाता है, दिंदूपन का विशेष | फिर भी यह कहना पढ़ेगा कि उस समय दिंदूपन का ही संदेश पुक प्रकार से भारतीयता का संदेश था, क्योंकि सुसक्मान ्रचिकतर विदेशों थे । केशवदापस के कथन अच्छे हैं, श्रौीर उनकी रचना में भक्रि का संदेश माना गया है, किंतु हमारी समक में वह पुष्ट नहीं होता । रामचंद्रिका में भक्ति गोथ रूप से है । उसमें कथा- प्रसंग तथा वर्णनोत्कष की मुख्यता है, न कि भक्ति की । विज्ञान-गी ता में परमोच्च विचार कम हैं । उसमें चलतू अथवा काम-काजू घम का गया है । रसिकप्रिया श्र गार-प्रधान ग्रंथ है, और कविप्रिया ब्ाचार्यत्व-पूर्ण । इनके शेष अथ साधारण हैं । कु मिलाकर केशवदास का श्राचायत्व एवं सादित्योन्नति का संदेश कड़ा जा सकता है, श्रौर कोई नहीं । कबीरदास का संदेश ऐक्य का है । उनके मतानुसार इश्वर एक, 'घर्म एक, मनुष्य की प्रतिष्ठा एक, सत्य एक शोर सभो संसार पक है । सभी बातों में डनकी झद्ढत टष्टि हे । दिंदू झौर मुसक्त मानी घ्म को वह एक मानते, सब मनुष्यों की प्रतिष्ठा को समान समकते श्रौर सभी प्रकार से दाचिएय-पूण उपदेश देते हैं । शनका संदेश परमोच्च दै, किंतु कथन उत्कृष्ट होने पर भी वेसे नहीं हैं । विचारों की अपेक्षा उनकी भाषा कुछ लची हुई है । मतिराम का संदेश सादित्योन्नति है, झोर उनकी भाषा बहुत कल्ित है । चंदूबरदाड़ ने कथा अच्छी कही है, और उनके वणन भी टीक हैं । भारतेंदु का संदेश जातीयता हे; श्रौर वह परम सफल्ता-पूवक व्यक्ष हुआ है । उत्कृष्ट कवियों के कथन में हिंदी का इतिहास भी कह देना विषय पर झच्छा प्रकाश डालेगा'। हिंदी की जननी संस्कृत हे. या प्राकृत, इस विषय में मतमेद शेष नहीं हे; झब पंडितों के बहुमत का सुकाव




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