रोमान्चक रूस में | Romanchak Rus Men

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Romanchak Rus Men by डॉ सत्यनारायण - Dr. Satyanarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नवारिदा दे *' वहाँ । ”” उसने जहाजकी रोशनी दिखलाते हुए कहा । घुंघली-सी चेतना आई । वास्तव आज ही तो मेरा जहाज खुलने- वाला था । पर वह तो शामके ही समय खुल गया हागा ! ** लकिन वह तो मेरा जहाज नहीं, राशनीकी ओर थोड़ा ध्यानसे दखकर मैंने कहा । “ खैर, वहँँ तक चला तो सही ! ”' “ किस लिए ? ” मैं रुक गया । ““ भावुकता छोड़ो, ” वह भी तन कर स्वड़ी हो गई और तीव्र याब्दौमें बाली, “ भावुकता दही जीवन नहीं । ” उसने मर कंघधपर हाथ रखा । मुझे बिजली-सी लगी. । हाथ हटा दनेका साहस नहीं हुआ । उसकी भी आंगेकी बातें दरारती बच्चोंको फुसलानेकी मभीति हानि लर्गी । उसके साथ चलनेके लिए मैं बाध्य हुआ । र्‌ ““ भाइ मेरे ! ” रास्तमें अपने छोटे भाइकी भौति वह मुझे समझाने छगी, “' बढ़ी बेरहमीके संग्रामका ही नाम जीवन है । इस संग्राममें विश्राम नहीं; अस्त्र रखना नहीं, सन्घिकी आशा नहीं । अगर तुम मनुष्य बने रहना चाहते हो तो सोते-जागते, उठते-बेठते अहर्निशि तुम्हें जूझते ही रहना पड़ेगा । *' लेकिन संगिनीको . . . तुम चाहो या न चाहो, उसे छोड़ तुम्हें जीवित रहना ही पड़ेगा ।”' उसने बात काटते हुए कहा, “' प्रेम और आनन्द धोखा देनेवाले क्षणिक मित्र हैं; उनका एकमात्र काम हृदयकों दु्ल बना डालना है । सबसे बढ़ी लड़ाई तो यहीं हुआ करती दे । तुम्हें अपनी ओरसे ललकार कर || 23




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