छलना | Chhalana

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Chhalana by भगवती प्रसाद बाजपेयी - Bhagwati Prasad Bajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना ) [ ११ इसी प्रकार 'विलासचन्द्र' श्रीर 'नवीन' श्राघुनिक दृष्टिकोग रखत हैं । 'बलराज' झ्ादशवादी होता हुमा भी नवीन दृष्टिकोग से वचित नहीं है । पुराने श्र नये टष्टिकोर्गों का छलना में अच्छा समन्वय हुभ्रा है । प्रत्येक पात्र के मनो- विकारों का सहानुभूतिपूर्वक श्रौर मार्मिक चित्रण हुआ है । भाषा भी परि- मार्जित, सुन्दर, सरस श्रौर प्राय: सुबोध है । 'लना' में चार गीत भी हैं । वे भी भावपूर्ग श्र चुटीले हैं । उनका प्रयोग भी उपयुक्त स्थानों पर किया गया दे । वे आलाप के भाव को बढ़ी सुन्दरता स प्रतिबिम्बित और प्रकाशित करते हैं। काव्य की दृष्टि स भी वे अच्छे हैं ्ौर मनोत्रत्ति श्रोर सिद्धान्त की रक्ता श्रच्छी तरदद करते हैं । यह कहना तों श्रतिशयोक्ति होगी कि “'छलना' में किसी प्रकार की कमी नहीं । स्वेथा दोषद्दीन रचना तो शायद युग में एक ही ्ाध होती है । 'छलना” में भी इधर-उधर तराश श्रौर मांजने की गुजायश है । किन्तु से नये, कठिन श्रौर कोमल काम के करन में वाजपेयीजी को जितनी सफलता मिली है. वद्द सबथा सराहनीय है । झापकी साहित्यिक तपस्या भ्रौीर विदग्घता की यह सुन्दर कलिका है । कहानी, उपन्यास श्रौर कविता लिखने में तो आपने श्रच्छा स्थान प्राप्त कर ही लिया हे । डिन्दी-साहित्य के प्रेमियों से ध्ाशा है कि वे इस नये क्षेत्र में भी आपका स्वागत करत हुए श्रापके प्रयत्नों का यथष्ट झादर आर उत्साह का प्रवद्धन करेगे । प्रयाग रामप्रसाद त्रिपाठी रद८-११-३६ एम, ए., डो. एस-सी.




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