स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा | Swamikarttikeyanupreksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म्वामिकार्तिकेया नुप्रेक्षा. ९
'माषाथे-जो पुरुष अनेक प्रकार कला चतुराई बुद्धि करि ठक्ष्मीने बधावे
है, तृप्ति न होय है, याके वास्ते असिमसि कृष्यादिक सर्वारंभ करे हे, रातिदिन
याहीके आरंभको चितंवे है, वेला भोजन न करे हैं चिंताम॑ तिष्ठथा हुवा रात्रि
विषे सोचे नाहीं हैं, सो पुरुष लक्ष्मीरूपी स्त्रीका मोह्या हुवा ताका किंकरपणा
कर हैं; भावाथ-जो स्त्रीका किंकर होय ताकों ठोकविषप “मोहल्या' ऐसा निं-
दनाम कह है, सो जो पुरुष निरस्तर लक्ष्मीके निमित्तही प्रयास करें हैं सो
लक्ष्मीरूपी स्त्रीका मोहल्या हे ।
आगे जो लक्ष्मीको धर्म कार्यम लगावि ताकी प्रदंसा करे ह--
जो वदुमाण लड्छिं अणवरयं देहि धम्मकज्जेसु ।
सो पंडिएहिं थुव्वदि तस्स वि सहला हुवे लच्छी ॥ १९ ॥
यः व्धमानलक्ष्मी अनवरतं ददाति घर्मेकार्येपु ।
सः पण्डिते: स्तूयते नम्य अपि सफला भवेत्ू लक्ष्मी: ॥ १९ |
माधाध-जो पुरुष पुण्यकें उदय करि वधती जो लक्ष्मी ताहि. निरंतर धर्म
कायनिविप दे हे सो पुरुष पंडितनिकरि स्तुति करनयोग्य है. बहुरि ताहीकी
लक्ष्मी सफल है. 'मावाध- लक्ष्मी पूजा प्रतिष्ठा, यात्रा, पात्रदान, परका उपकार
इत्यादि धमकायेविप खरची हुइंदी सफल है, पंडितजनभी ताकी प्रदांसा करे है।
एवं जो जाणिता विहलियलोयाण धम्मजुत्ताण ।
णिरवेक्खो त॑ देहि हु तस्स हवे जीवियं सहलं ॥ २० ॥
एवं यः ज्ञात्वा विफलिनलो कर्य: घमेयुक्त मय |
निर्पेक्ष: तां ददाति खत तम्य भवेतू जीवित सफल | २० ॥।
भाषाधथ-जो पुरुष पहिले कह्या ताको जाणि धमयुक्त जे निधन लोक
हैं. तिनके आर्थि प्रति उपकारकी बांछासों रहित हवा तिस लक्ष्मीको द है, ताका
जीवना सफल है. मावाथ- अपना प्रयोजन साधनेके अर्थि ती धन देनेवाले
जगतमें बहुत हैं. बहुरि जे प्रतिउपकास्की बांछारहित धर्मात्मा तथा दुः्खी
दरिद्वी पुरुपनिको घन दे हैं, ऐसे विरले हं । उनका जीवितव्य सफल है।
आगे मोहका माहात्म्य दिखांव ह ।
जलवुव्वयसारित्थ॑ धणजुन्वणजीवियं पि पेच्छंता ।
मण्णंति तो वि णिच्चे अइवलिओ मोहमाहप्पो ॥ २१ ॥
ग
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