स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा | Swamikarttikeyanupreksha

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Swamikarttikeyanupreksha by पन्नालाल बाकलीवाल -Pannalal Bakliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म्वामिकार्तिकेया नुप्रेक्षा. ९ 'माषाथे-जो पुरुष अनेक प्रकार कला चतुराई बुद्धि करि ठक्ष्मीने बधावे है, तृप्ति न होय है, याके वास्ते असिमसि कृष्यादिक सर्वारंभ करे हे, रातिदिन याहीके आरंभको चितंवे है, वेला भोजन न करे हैं चिंताम॑ तिष्ठथा हुवा रात्रि विषे सोचे नाहीं हैं, सो पुरुष लक्ष्मीरूपी स्त्रीका मोह्या हुवा ताका किंकरपणा कर हैं; भावाथ-जो स्त्रीका किंकर होय ताकों ठोकविषप “मोहल्या' ऐसा निं- दनाम कह है, सो जो पुरुष निरस्तर लक्ष्मीके निमित्तही प्रयास करें हैं सो लक्ष्मीरूपी स्त्रीका मोहल्या हे । आगे जो लक्ष्मीको धर्म कार्यम लगावि ताकी प्रदंसा करे ह-- जो वदुमाण लड्छिं अणवरयं देहि धम्मकज्जेसु । सो पंडिएहिं थुव्वदि तस्स वि सहला हुवे लच्छी ॥ १९ ॥ यः व्धमानलक्ष्मी अनवरतं ददाति घर्मेकार्येपु । सः पण्डिते: स्तूयते नम्य अपि सफला भवेत्‌ू लक्ष्मी: ॥ १९ | माधाध-जो पुरुष पुण्यकें उदय करि वधती जो लक्ष्मी ताहि. निरंतर धर्म कायनिविप दे हे सो पुरुष पंडितनिकरि स्तुति करनयोग्य है. बहुरि ताहीकी लक्ष्मी सफल है. 'मावाध- लक्ष्मी पूजा प्रतिष्ठा, यात्रा, पात्रदान, परका उपकार इत्यादि धमकायेविप खरची हुइंदी सफल है, पंडितजनभी ताकी प्रदांसा करे है। एवं जो जाणिता विहलियलोयाण धम्मजुत्ताण । णिरवेक्खो त॑ देहि हु तस्स हवे जीवियं सहलं ॥ २० ॥ एवं यः ज्ञात्वा विफलिनलो कर्य: घमेयुक्त मय | निर्पेक्ष: तां ददाति खत तम्य भवेतू जीवित सफल | २० ॥। भाषाधथ-जो पुरुष पहिले कह्या ताको जाणि धमयुक्त जे निधन लोक हैं. तिनके आर्थि प्रति उपकारकी बांछासों रहित हवा तिस लक्ष्मीको द है, ताका जीवना सफल है. मावाथ- अपना प्रयोजन साधनेके अर्थि ती धन देनेवाले जगतमें बहुत हैं. बहुरि जे प्रतिउपकास्की बांछारहित धर्मात्मा तथा दुः्खी दरिद्वी पुरुपनिको घन दे हैं, ऐसे विरले हं । उनका जीवितव्य सफल है। आगे मोहका माहात्म्य दिखांव ह । जलवुव्वयसारित्थ॑ धणजुन्वणजीवियं पि पेच्छंता । मण्णंति तो वि णिच्चे अइवलिओ मोहमाहप्पो ॥ २१ ॥ ग




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