महादेव भाई की डायरी भाग - 1 | Mahadev Bhai Ki Dayari Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
412
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हरिः 3४ थी सदूगुरवे नमः ।
स्वप्रमें भी यह खयाल न था कि यह दिन मेरे माय्यमें होगा । हाँ, अेक
दिन नासिकमें जैसा सपना जरूर आया था कि मैं यरवदामें
०-रे-३२. हूँ। अेकाअेक सुझे बाएके पास ले जाया गया आर मैं
बापुके पेरों पढ़कर रोने लगा, और पता नहीं क्या हो गया ,
कि आदर रोकनेसे भी नहीं सके । रोचने सुबह .आकर कहा कि-- “चलो
ठुग्दारी बदली हुआ है । अेक घंटेमें तैयार हो जाओ | ” मैंने पूछा -- ' कहाँ ?
तो वह बोला -- “ तुम जानकर खुश होगे और सुझे धन्यवाद दोगे । मगर मुझसे
बताया नहीं जा सकता 1” मैंने डॉक्टर चन्दूलालसे मिलनेकी मांग की; मगर
जिंजाज़त नहीं मिछी । नी वजे नासिकसे बैठे । मेरे साथ जो पुलिसवाले थे,
थे ही कुछ दिन पहले विट्ठलभाभीकों यहाँ छोड़ गये थे । जिनमेंसे अेकसे पुरानी
जान पहचान थी । बापू जब लेड रेडिंगसे मिलने गये तब -- तारीख भी जिस
आदमीकों याद थी: १७ जून १९२० -- वह सर चाह्स जिसका खानतामा
था । फिर वह युवेंक, रा. सा. शुणबंतराय देसाओ वयैराके साथ रहकर पुलिसमें
भरती हो गया । सुसने सुझे दिमलामें देखा था, विंद्रलभाओीके यहाँ भी देखा
था । झुसकी स्मरण शक्रित भी खुब थी ।
जब अकबरअली सावस्मतीमें मिला; तो झुसकी अंखिं भर आयीं और
अुसने अपनी कोठरीमें बन्द होकर कहा --“' मेरी दुआ है कि आपको शाधीजीके
साथ रखा जायगा ।” तब मुझे लगा था --“तेरी दुआ तो हो सकती है, मगर मैं
वह नसीब कहूँसि लार्ू ! ” सुसने कहा था -- “ छेकिन फिर भी मेरी दुआ
है ।” अकबरअलीके बारेमें क्या क्या नहीं सुना था! छेकिन अुसने मुहन्यत
दिखानेमें कसर नहीं रखी और सुसकी दुआ ही फली !
प्यारेलालने तो नासिकमें ही सबसे कह दिया था कि हम मार्टिनके साथ
जिन्तजाम कर आये हैं । यह मुझे तो गप्प मुद्मं हुआ थी । लेकिन यह भी
सच्ची बात ,थी ।
दरवाजे पर जरा कड़वा स्वागत जो हुआ, तो अँसा सोच छिया था कि
” नासिकसे सुसने पिण्ड छुड़ानेके लिखे मेरी बदली की है, और बापुके देन होंगे ही
नहीं । झुसके बजाय बहा तो कटेली हँसते हँसते आये भोर कहने लगे कि मेरे
साथ चल्यि । हमें आज ही चार वजे खबर मिली है कि आपको सहात्माजीके
पु
की
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