महादेव भाई की डायरी भाग - 1 | Mahadev Bhai Ki Dayari Bhag - 1

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Mahadev Bhai Ki Dayari Bhag - 1  by नरहरि द्वा. परीख - Narahari Dwa. Parikh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हरिः 3४ थी सदूगुरवे नमः । स्वप्रमें भी यह खयाल न था कि यह दिन मेरे माय्यमें होगा । हाँ, अेक दिन नासिकमें जैसा सपना जरूर आया था कि मैं यरवदामें ०-रे-३२. हूँ। अेकाअेक सुझे बाएके पास ले जाया गया आर मैं बापुके पेरों पढ़कर रोने लगा, और पता नहीं क्या हो गया , कि आदर रोकनेसे भी नहीं सके । रोचने सुबह .आकर कहा कि-- “चलो ठुग्दारी बदली हुआ है । अेक घंटेमें तैयार हो जाओ | ” मैंने पूछा -- ' कहाँ ? तो वह बोला -- “ तुम जानकर खुश होगे और सुझे धन्यवाद दोगे । मगर मुझसे बताया नहीं जा सकता 1” मैंने डॉक्टर चन्दूलालसे मिलनेकी मांग की; मगर जिंजाज़त नहीं मिछी । नी वजे नासिकसे बैठे । मेरे साथ जो पुलिसवाले थे, थे ही कुछ दिन पहले विट्ठलभाभीकों यहाँ छोड़ गये थे । जिनमेंसे अेकसे पुरानी जान पहचान थी । बापू जब लेड रेडिंगसे मिलने गये तब -- तारीख भी जिस आदमीकों याद थी: १७ जून १९२० -- वह सर चाह्स जिसका खानतामा था । फिर वह युवेंक, रा. सा. शुणबंतराय देसाओ वयैराके साथ रहकर पुलिसमें भरती हो गया । सुसने सुझे दिमलामें देखा था, विंद्रलभाओीके यहाँ भी देखा था । झुसकी स्मरण शक्रित भी खुब थी । जब अकबरअली सावस्मतीमें मिला; तो झुसकी अंखिं भर आयीं और अुसने अपनी कोठरीमें बन्द होकर कहा --“' मेरी दुआ है कि आपको शाधीजीके साथ रखा जायगा ।” तब मुझे लगा था --“तेरी दुआ तो हो सकती है, मगर मैं वह नसीब कहूँसि लार्ू ! ” सुसने कहा था -- “ छेकिन फिर भी मेरी दुआ है ।” अकबरअलीके बारेमें क्या क्या नहीं सुना था! छेकिन अुसने मुहन्यत दिखानेमें कसर नहीं रखी और सुसकी दुआ ही फली ! प्यारेलालने तो नासिकमें ही सबसे कह दिया था कि हम मार्टिनके साथ जिन्तजाम कर आये हैं । यह मुझे तो गप्प मुद्मं हुआ थी । लेकिन यह भी सच्ची बात ,थी । दरवाजे पर जरा कड़वा स्वागत जो हुआ, तो अँसा सोच छिया था कि ” नासिकसे सुसने पिण्ड छुड़ानेके लिखे मेरी बदली की है, और बापुके देन होंगे ही नहीं । झुसके बजाय बहा तो कटेली हँसते हँसते आये भोर कहने लगे कि मेरे साथ चल्यि । हमें आज ही चार वजे खबर मिली है कि आपको सहात्माजीके पु की




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