महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का जीवन-चरित्र | Maharishi Swami Dayanand Saraswati Ji Ka Jeewan Charitra

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maharishi swami dayanad saraswati ji ka jeewan charitra by चिम्मनलाल वैश्य

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ संजार में शान्ति प्राप्त बरने का पक मात्र उपाय 4: न जलि जौ फदते ऐ कि सम्पूर्ण दुम्दों थो उत्पत्च का स्वास घचियधा हैं जैसा दि- दिय्याचष घसुचरेपां घ्सुप्ततदुविधिननौट्राणाद 1 । इसी घयिड्या दो प्ारप मचुप्पो, ने झपने लग में झित्य स्टंसार पे नित्य | निस्खय यार खिया द-उसी अकार जिस सिंयों से सदा पपचिज यरदु चिंदाला | करनी से उसणों छुन्दर मान भोग दिजाख फे योग्य द्तरा लिया है यपीमजुप्यां 1 को नाना प्रद्धार थी चाइना घर दिगयं। से 'हस्लाती दे जिलव्ते एप करने मो दॉय्पिय सचुग्य' उचदी श्रजन्यतदा शोर पानन्द पप घ्ाप्त रूया समभते ऐँ. से दारण ठुस्य के समुद्र में गोना जादे रतते है घोग धारंप ने हित छा छुछ्ध चियार पहीं दरये स्पेंसि यढ इन्ियों के सोग से परे फोई रस्य मदीं खनसूगें ज्ौए थे इस संदार से परे फोई संसार सानते हि जैसा फि मद पातं- अदि रे योगदान से याद द- ७-3 निर्साशुदि दुश्हानात्यचुनित्य शुचि सुद्धास्पस्पासिरदिया दी दयरण तो यचुप्यों ने धन यी दि परे कुम्ण ऐसें घास ऐ सा का धारण समझ रफ्ण हि । घास्तव में राच्मी देने साथ दी छुन्दर दै प्र लय यए जाती है यो जररूर्प सदुगुपों का नाश फर देती है घर जिज प्रसार विए दीं जना देसंदें भाव सुन्दर और खाते दी मार रालसी ऐ उसी प्रकार रूदमी फे घाप्त शोसे से शात्मा पदच्ण नाश शो ऊाता ऐ । जिस घब्पर चोपफ घ्रज्वलित दोनें की ददार में अकाश मालूम दा है शर दाद दीपक सुक जाता छू तंद अव्मश दा डाभाव ऐो दाता है घोर उस का सिंदाए घाजल चदद जाता रे उसी प्रकार उप खष्मी धान दोनी हैं साय यड़े २ शोग शूयापाती हैं फिर उस से तुप्पासापी कायल उत्पन्न दोजाता ऐ डर लदमी दो घरस्पिर हैं नाश दो जाती हैं नंद चप्णारुपी फाजण रा जाता हैं जिस से फसी गांसि घाप्त नहीं होनी जौर जन्म दान्य ऊन्नान्तर में झुम्ख उठाने पड़ते &ै जिस धार खद्धग की धारा देखने में खुन्दर सोती हैं परन्तु रूश करते पी नाश दर देती है रखी भांति लदमी स्रो घादि पदार्थ अधिया दो छे फारण उसम शारसते ए जो सुभाने चालें हैं इसी लिये ऋषियों का सिद्धान्त था कि चद् लोग मरा दु्व्वी हैं जो अविद्या की उपासना करने ऐ-जेसा दिए अ्स्थंतमः झविशन्तियेउदिष्यासुपासते । इसी हेतु सांख्य दुर्धन अ० दे सूच रहे में फटा है दि छपनान्मुक्ति: लर्थात्‌ कान ही द्वारा सुक्ति दोती ऐै। व्ल्यॉकि सददर्पि क्रपिल दे फदा है कि सत्य छान से सिथ्या शान का चाश दो जाता है शोर फिर उससे सन च छ्प आदि दोपो का नाश हो लाता है और दोपों पे नातत.खे प्रयूति का नाश शौर उसके नाश दोने से कर्म चद एो जाते मैं रद 0८००९ सयलयणायालाापलननािनपएपनकटलनटनटटएएशय नस पलक नकरटववकटलनटलनटलय




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