हिन्दी गीताविज्ञान भाष्य भूमिका ख्हंद 2 | Hindi Gitavigyan Bhasya Bhumika Khand 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
380
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोतीलाल शर्मा भारद्वाज - Motilal Sharma Bhardwaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कम्मेयी गपरी क्षा
महददापुरुप का अन्ध-भक्त वना हुआ यह पेसतेवक -दोपदर्यनादइस्सिसेक
बृत्तिघारणं श्रद्धा” इस थद्धा के प्रभाव से उत्तर को भी ठीक मान लेता दे । उत्तर में तेल.
क्यों है? यदद भी विचार कर छीजिए। राजनैतिक क्षेत्र में राजनीतिं का ही प्राघान्य है ।
यहाँ युक्ति-तकं-सम्मत चुद्धिबाद से ही काम चछ सकता हैं। ईश्वर-आत्मा-घस्म-पर भरोसा
कर हाथ पर हाथ धरे वेठे रहने से न तो अतीतयुगों में इस क्षेत्र में कोई चिजश्री का चरण कर
सका; न आज ही कर सकता । ठीक इसके विपरीत धार्मिकक्षेत्र में धर्म्मनीति का ही
प्राघान्य दै। 'यश्र युद्ध: परद्धतः” को छोड़ कर अस्मदादि सामान्य मनुप्यों के ठिए
धर्स्सप्रदत्ति का एकमात्र साधन श्रद्धाविश्वास का अनुगमन ही दै। यहां युक्तिसम्मत
चुद्धिबाद का प्रवेश निपिद्ध है। मददापुरुप ने धार्म्मिकक्षेत्र में राजनीति का समावेश कर
डाला; जब राजनीति का प्रश्न उपस्थित हुआ; तो धम्म॑ं की दुद्दाई दे डाठी। दोनों हीं
लक्ष्यों से च्युत कर डाठा, न राम मिले; न रद्दीम ।
पाठक प्रश्न कर सकते हैं कि, मद्दापुरुप ने ऐसा क्यों किया १ इन मंकठों से महापुरुप
का कौनसा छाभ था ?।. उत्तर उसी महापुरुप शब्द से पूंछिए । बड़े आदमी बनने के लिए
आरम्भ में छुछ समय तक तो अवश्य ही तथ्यपूर्ण मागे का अल्लुगमन करना पढ़ता दे.
त्याग की भावना रहती है; सामाजिक दुःख-सुखों में सहयोग रहता दै। इन प्रारम्भिक गुणों
के आधार पर छृतनज्ञ हिन्दूजाति प्रत्युपकार के वदठे उसे “व्यक्तिप्रतिप्ठा' देती हुई 'महदापुरुप”
मान लेती दे, एवं हिन्दूजाति का यद्द उपाधिप्रदान शिष्टाचार के नाते सर्वथा अनुरूप होता
है। परन्तु व्यक्ति-प्रति्ठा प्राप्त महापुरुप कुछ दी समय पीछे 'कत्तेब्य' तथा “व्यक्तित्व”
( अधिकार ); दोनों के समहुठन में कर्तव्य को भूठ जाता दे, व्यक्तित्व का पक्षपाती चन
जाता दै। अपने इस व्यक्तित्त की रक्षा के लिए इसे प्सबंध' का बाना पदिन कर समाज के
सामने आना पड़ता है। यह देखता दै कि; यदि में किसी की जिज्ञासा शास्त न कर सका;
उत्तर न दे सका, तो मेरा व्यक्तित्व गिर जायगा; में बड़ा आदमी न रहूंगा। थस एकमात्र
इसी व्यक्तित्व प्रठोभन में पड़ कर फ्या धार्मिकश्षेत्र के मद्दापुरुप ( चिद्वान् ), क्या राजनैतिक-
१ जिस पर एफचार किसी कारण विशेष से हमारी श्रद्धा दो जाती दै, दम उस व्यक्ति के दोप न तो
स्वयं दी देख सकते, न दूसरों के द्वारा बतलाएं गए उस श्रद्धेय के दोपों का श्रयण दी कर सकते । श्रद्धा
एक ऐसी मानसिक पृत्ति है, जो श्रद्धेय के दोपदर्यनानुद्धष इमारे मानसभावों का द्वार बन्द कर देती है
हद २१
User Reviews
No Reviews | Add Yours...