संस्कृति और साहित्य | Sanskrti Aur Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी साहित्य की परम्परा श्डे
भी पंचायती ढंग का था परंतु बाद में उनमें कुछ सदारों का ऐसा
प्रमुत्व हो गया जो जनशक्ति का उपयोग झपने स्वाथ के लिये करने
लगे । शिवाजी के नेतृत्व में जनशक्ति का जो संगठन इुश्रा, उसका
प्रभाव भी साहित्य पर पड़ा । भूषण के छन्दों में जहाँ-तहाँ यह जन-
ध्वनि सुनाई पड़ती है। परंतु भूपण आरंभ से ही दरवारों में रहे थे
और तुलसीदास के बिपरीत जन कवि न दो कर एक दरवारी कवि थे ।
नायिका भेद को श्रपना काव्य-विषय न चनाकर उन्होंने श्रपने
त्रा्रवदाताओ्ओों पर छन्द लिखे थे। फिर भी उनके झाश्रयदाता
श्साधारण व्यक्तित्व के लोग थे | श्र उनमें लोक नेताओं के गुण
विद्यमान थे | भूपण अपनी धारा के ऑरकेले कवि न थे | रीतिकाल में
ही वीरगाथा काल का एक छोटा-सा नूतन आआविर्भाव-सा हो गया था;
परंतु “वीररस” के इन कवियों को श्रधिक लोकप्रियता न मिली,
उसका कारण यह था कि वे द्रपने श्राश्रयदाताओं के भक्त पहले थे,
देश के भक्त बाद को । «
१६ वीं. शताब्दी में डगमगाते सुग़ल साम्राज्य आर ध्वस्त
सामंतवाद की मुठभेड़ यूरुप के नवीन पूँजीवाद से हुई । यदद पूँजीवाद
न्य देशों 'की अपेक्षा इंगलैंड में अधिक विकसित हो चुका था |
इसलिये यूरुप को अन्य शक्तियाँ हिन्दुस्तान की लूट में श्रेग्रेजों के
सामने न टिक सकीं । सन् *५७ तक यह पूँजीवादी साम्राज्य अपना
विस्तार करता रहा । सुराल साम्राज्यवाद छुछ तो भारतीय जन-संघर्प
_ के कारण, कुछ अपनी कट्टर धार्मिक नीति और विलासिता के कारण
श्र अधिकांशतः श्पनी सामंतवादी बुनियाद के कारण इस नये
उद्योग-धंधों की बुनियाद पर तैयार किये गये बिटिश पूँजीवाद का
सामना न कर सका । सन् ”५७ में बुकने के पदले उसने अंतिम साँस
ली। किसी इृद तक उसे जनता की सहानुथूति भी प्रात थी । मुरालों
के आक्रमण के समय कुछ -ज़र्मीदार, 'ताल्लुकेदार, राजा आदि उनसे
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