दिगम्बर जैन सिद्धान्त दर्पण | Digambar Jain Siddhant Darpan

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Digambar Jain Siddhant Darpan by दिगम्बर जैन - Digambar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ड़ से महा तु भा व. ब्रम्बई, में-निवास करते हूं । ऑ्तः 'दिगम्बर जैन संस्कृति की जड़ पर प्रोफेसर दोरालाल जी द्वारा कुठाराघात होते देख बम्बई पंचायत में खहूत कोभ फैला । उस लोभ को शांत करने के लिये तथा इस विपय का लकास्य निशंय कराने के 'लिय उसने निश्चय किया । तदनुसार बम्बई पंचायत की शोर से प्रोफेसर साइव के उक्त लेख की प्रतिलिपि छपाकर विचार- ' बशाथ रिंगम्बर जन चिट्ठानो, पृथ्य 'माचार्यों, मुनिया, 'याधयिकाओओं, एऐलका, क्ुल्लको, न्रझचारया तथा ब्यन्य संसार-विरक्त मददानुभावों के पास भेजी गई वर उस लेगय के युक्तिपूकेक निराकरण के लिये प्ररणा की गई ।. तथा. प्रत्येक दिगम्बर झन पंचायत से प्रोफेसर साइव के विचारों के विपय में सम्मर्ति मंगाई गई । ' हप है कि दगम्वर जन समाज के पृज्य संयमी सघ ने तथा धिद्वानों में परिस्थिति को गम्मीरताका बनुमव करके बंबई पंचायत के अनुरोध को स्वी- कार करके पनी लेखनी इस बिपय पर चज्ञाई अर पचायता न अपनी सम्मतिया भजीं । उनमें स श्रीमान पं० मक्खनलाल जी शास्त्री का लेख झाद्य अंशके रूपमे पदले प्रकाशित दो चुका है । यहद बवितीय अंश आपके समक्ष है, तृतीय अश जिस - में झन्य शेप पृज्य त्योगियों, बिद्वानों क युक्तियुक्त लेख तथा पंचायताकी सम्मतियां संकलित हैं आपके सामने श्राने बाला है | १0 प्रोफेसर माइब के विचार जनता झाश्चय में है कि घबलशाख्र के संपादक श्रीमान प्रोफेसर हीरालाल जी ने जैंन झाप॑ ग्रन्थों के प्रतिकूल अपनी ब्रिचार धारा किस प्रकार प्रगट की है ! परन्तु जो सुद्दानुमाव प्रोफेसर साइव के विचारों से परिचित थे उनको इस विषय में ारचयें नदी हुआ । ह प्रोफेसर ज्ाइब ने 'जेन इतिहास की पूद पी- टिका झोर हमारा झभ्युत्यान' शी पक एक पुस्त- क लिखी है जिसके झ्तिम भागमें आपने जेनसमा- ज के बरिपय में श्पने विचार प्रगट किये हैं। उन त्रिचारोंमें प्रायः वे सब बाते हैं जो स्व० बा० झा जुन | लॉल, जी सेठी ऑडिउ ने अचार में लानी चाद्दी थीं किन्तु झांगम-बिरुद्ध होने के कारण जैन समाज ने उन बातंका जोरदार झाबाज से विरोध किया था । जो महदानुभाव देखना चाहे वे उक्त पुस्तक के ''समाज-संगठन शीपक 'न्तिम प्रकरण को पढ़ें । इस प्रकरणमें आपने विधवाबिवादद, जातिपाति भंग, दस्सा बीसा मंद लो प, चणुव्यवस्था लोप श्रादि बात का खुला समथन किया दै । ततः प्रोफेसर साइबने जो कुछ लिखा है बहू यों ही सहसा नद्दी लिख डाला किन्तु अन्य सुधारकों के समान ही उन्हों ने सब कुछ समभ चूभ कर लिखा है व्तएव प्रोफेसर साइब जहां जैन साहित्य संबा की दृष्टि स श्रादर के पात्र हे बहां 'छागम प्रतिकूल घिचा- रप्रगट बरने के कारण पयाप्त झाललोचना के भो पात्र है । श्ाशा है झाप अपनी इस खंरी झालोचना को पेय गाम्मीय के साथ अवलोकन छोर मनन करेंगे । इस पुण्यकाय में निम्नलिखित महानुभावों की सद्दायता भाप्त हुई है । (१) प्रथम ही श्री १०८ झाचाय कुन्धुसागरजी महाराज के चरणों में शतशः मस्तक सुकाकर_सम्हें को टिशः धन्यवाद है. आप पूज्य श्री ने बंबई दि०




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