नियतिवाद | Niyativad

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Niyativad by रतनचन्द जैन मुख़्तार -Ratanchand Jain Mukhtar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्ु सिय्ियाह 'और को कार्य मया सोइ होनदार । धदूरि जो पर्म का उपरामा टिक है सो पुदुगल फी शक्ति दे । तारा आत्मा हर्ता करता नहीं । धहुरि पुरुपाथ से र्यम करिण है सो यह अतमा का कार्य है । दाने आर्मा को पुरुपार्य करि उधम परने का सपरेश गीजिय हूँ इस से स्पप्ट हो जाता दे दि माभमाग प्रह्वाइफ में भी काठ रुच्षि, दोगदार या नियत स्वकाल स्पीकषार नहीं दिया गया दै डिम्तु सोझपणय के बाउ यो. अनियन मानकर पुष्पार्थ के द्वागा मोख पर्यौय दी प्राप्रि का उपदेश टिया गया है । जब मोख पर्याय का फाठ नियत नहीं दे सो आगे पीछे होने फा प्रशा ही इस्पस नहीं दोवा ! काल लबिव ये 'होनदार' ने द्रन्य है, ने शुण है, न पयाय दे और ने आपसिक धर्म हे इसीलियं मोश्मार्ग प्रफायुक में कहा गया 'बालल्पि या दोनदार तो क््ि बसु नदी” प्रयामानुपोग और श्रमयद्ध पर्याय प्रसन ने दन-पंथमपालवे शत मे दोने थाने मुनि, आर्यिा, आपके, आधिफा फे नाम आदि को वन पाया जाग दै और आगामी 'बोपीस ताधेफर पे नाम भी पाये जात हैं । तथा मारीय का णीय अन्तिम नीर्यकर दोगा । इस्याहि कथन प्रयमा तुयोग म पाये जाते हैं । जिनसे प्रमदद्ध पर्याय सिद्ध दोती दे उत्तर में दनायरि कुछ पर्यायों का काल नियत दो सो रसस पद सिद्ध नहीं दो सका कि सब द्रडया की सर्थ पयायों का काठ नियत दै । कयोंपि नियत पाया थी अय पयायों के साथ ब्यािज्ञाप का संबंध नहीं दे । डोस घूम के सदूसाय मे




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