कला और मानव | Kala Aur Manav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 कला श्रौर मानव में इस शब्द का श्राशय स्पष्ट नहीं होता | प्राचीन समय मैं कलाकार कला की उत्पत्ति में डू ज्यादा संलग्न रहते थे श्रीर वह कया या क्यों कर रहे बातों की श्रोर कम ध्यान देते थे । वह उन सानसिक प्रशेचियों के विश्लेपणश की परवाह नहीं करते थे जो उनकी कलात्सक कृतियों में अन्त- - शध्रूत थीं तथा उनके लिए सबदा प्रत्यन्न रुप में अधिगम्य थीं । न उन्हें यह निर्धारित करने की चिन्ता थी कि इन प्रश्त्तियों में से कौन-सी उनकी कला के लिए श्रधिक उपदेय था प्रधान रूप से संगत है। सो इस श्ालोचनात्मक दृष्टिकोण के न दोने के कारण यह स्वाभाविक था कि बह उन लोगों की हां में हां मिलाएं जिनका व्यवसाय ही श्रालीचना था | ऐसे लोग कलाकार की मानसिक प्रबूत्तियों या उसके कलात्मक साधन के बारे में जो कुछ भी कहे उसको मान लेने के सिवाय इन कलाकारों के पास श्र . चारा ही कया था | शरीर यदद श्राक्षोचक भी कलाकार की केबल उन बातों को महत्व देते थे जो उनके श्रपने से साहश्य रखती थीं । पर उस सारभूत विशिष्टता को जिसके प्रताप से कलाकार जैसे या श्रपने से श्रधिक बुद्धिमान लोगों में कलाकार बन सका समक् न सकते या समझने में गलती करते । सो यह स्वाभाविक था कि ... लैसा कि 0 मे लिखा है जिंस माध्यम का चिन्तन ललित-कलाश्रों की ग्रमिव्यक्ति के समस्त प्रमियम के सुतथ्यमय . मूल तक ही जाकर सौंदर्य के रहस्य को प्रकट करता है उसकी कलाकारों मै श्रपनी उ्तियों में उपेक्षा की । मेरा सतलब यह है कि बह. माध्यम की. .. वास्तविक सार्थकता को सदैव श्रौर स्पष्ट रूप में पहचानने में श्रसमर्थ रहे . हालांकि जब जब उन्होंने अपनी सहज स्वाभाविक कलात्मक प्रेरणा का श्ादेश माना वह श्रनजाने ही पर नैसर्गिक रूप में अपनी कृतियों मैं इसे प्राप्त करते रहे । डर .परिंशाम यह है कि माध्यम की इस धारशा.को स्पष्ट करने के लिए ... परम्परीगत प्रयत्न जो अब इसका. श्रीर भी विशदीक्ररण करने में सहायक होते बहुत कम हैं । श्रौर जब माध्यम की महत्ता को समझा गया जैसा




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