अपनी धरती अपना त्याग | Apani Dharati Apana Tyag

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Apani Dharati Apana Tyag by यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे थी 1 वह चाहती थी- भनाय ध्सीम को ने मां की ममता खले भौर मे बाप के वर्तेव्य का अमाव महसूस हो । गाज जब बह विशलेपण करती है तब उचे लगता है वश्तुत जही एक मावमां का एकाघिपत्य हो जाता है, वहा भादमी जीवन के सारे पहन सुर्भो के बारे में नहीं घोष सकता 1 यही दाल सुप्रिया का हुमा । यह रात-दिन हिस्टीरिया के रोगी को तरह ध्ोम के लिए रुपये एकत्रित करने लगी । ससुर से द्रसरी नाइट कुल । भर सवेरे उठते ही दूयूशनुस । भोद इस ब्यस्तता में नवेन्दु उससे दूर-दूरतर होता गया 1 उसका क्रमश, भ्रलगाद बा एकनएक पत्र झाज :भी सुरप्रिया के पास है । उसे लगता है कि बह सूर्स है । बाज के घोर एकान्त बोर नोरसता की जिम्मेवार बढ़ स्वय है। न वह म्रसीम के लिए आवश्यकता में पधिक व्यग्र-विस्तित होतो धौर न वढ़े अवैन्दु को धपने जोवन से दूर होने देती ? धौर हों, उसने ससोम *को एक पनवान के मैटे की तरहें पाता भोर यहीं कारण है हि भ्ाज उसके पास इतनी पु भी नहीं है जो इस उम्र में भी उसके लिए किसी के मन में भाकपंण उत्पसन कद सके 1 तो कया उसको बरवादों का कारण उसका प्रपता माई झमीम है ? छूणा से भर प्रश्न उसके मन में जगा, जितने उदकी तमस भाव बाधो को सकसौर दिया । सौर रूहसा उसकी भात्मा पर शिवटारने के बादल मंडरा उठे और उसे महसूस हुआ कि उसने ऐसा सोचकर भी पाप किया है । उसे प्पने बच्चे के बारे में इस तरह धुणा व जलने नहीं रहो चाहिए 1 क्यों एक एच्चो मां ऐसा पतित डिचार प्पने मन में ला सकती है ?*** उसे प्रतीत हुबा कि उप्तने कोई अपराष कर दिया हैं । छह वर्ष के प्रशोम को उसने भपनी गोद में लिया था, जब मां अन्तिम सांस रोक कर पड़ो थी । तथ वह भठारह वर्प की थी 1 बारह वें के बाद उसके एक माई हुमा था 1 उसको झांशामों की सीमा की तोड़कर । मा रहे प्यार से कभी-कभी दीपक भी कहती थी 1*** उस झदीम के लिए




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