जैन भजन मुक्तावली | Jain Bhajan Muktawali

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Jain Bhajan Muktawali by न्यामत सिंह - Nyamat Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिस न्यामत विलास पु शील का सिंगार मेरा घरम सिंगार । टेक ॥ जा तेरे रानी कहिये आठ दश हजार । जिस पर तू परतिरया का लोभी जीवन थिकार ॥ मत ॥१॥ तू लाया क्यों नहीं जीत स्वयम्बर खुठे दखार । अकेली बनसे लाया मुझको करके मायाचार ॥ मत ॥२॥। मतना हाथ लगाइयो मेरे पापी दुराचार में राखूं शीठ शिरोमणि नातर मरूं इपवार ॥ ३ ॥ न्यामत शील जगत में कहिये परम हितकार । आरे जो कोई याको स्यागे पड़े नरक मंझार ॥ मत ॥ ४ ॥ र्४ चाल--रिवाडी चाल की | कहाँ गया म्रिजाजन घर चाला ४ कहाँ गए तेंरे संगके साथी, संगके साथी जगके साथी ॥ टेक॥। कहाँ गया तेरा झुठाव कबीछा, कहाँ संगाती अर नाती॥१॥ अब तू ऐसे देश चढ़ा हे; पहुंच सकेगी नहीं पाती ॥ ९ ॥ छूट गया तेरामाठ खज़ाना, छूट गये घोड़े हाथी ॥ लाव उपाय करो चाहे वीरन, मौत लिए विन नहीं जाती॥४॥ चेतन छोड़ चढ़ा जड़ देददी, जल गया तेठ रही वाती॥ ५९॥ दाहकार करें घुतनारी; मात पिता इटें छाती ॥ ॥ न्यामत शरण गद्दो जिन वानी; अन्त समय यही काम आती! ७ २५ चाल--आानतेा लगाई परैसी नींद में ॥ देलला ॥ । अरे चातुर वेतन काहे को पढ़े हो जग कप में । लक रद | | । । | गा




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