जैन भजन मुक्तावली | Jain Bhajan Muktawali
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
930 KB
कुल पष्ठ :
40
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दिस न्यामत विलास पु
शील का सिंगार मेरा घरम सिंगार । टेक ॥
जा तेरे रानी कहिये आठ दश हजार ।
जिस पर तू परतिरया का लोभी जीवन थिकार ॥ मत ॥१॥
तू लाया क्यों नहीं जीत स्वयम्बर खुठे दखार ।
अकेली बनसे लाया मुझको करके मायाचार ॥ मत ॥२॥।
मतना हाथ लगाइयो मेरे पापी दुराचार
में राखूं शीठ शिरोमणि नातर मरूं इपवार ॥ ३ ॥
न्यामत शील जगत में कहिये परम हितकार ।
आरे जो कोई याको स्यागे पड़े नरक मंझार ॥ मत ॥ ४ ॥
र्४
चाल--रिवाडी चाल की | कहाँ गया म्रिजाजन घर चाला ४
कहाँ गए तेंरे संगके साथी, संगके साथी जगके साथी ॥ टेक॥।
कहाँ गया तेरा झुठाव कबीछा, कहाँ संगाती अर नाती॥१॥
अब तू ऐसे देश चढ़ा हे; पहुंच सकेगी नहीं पाती ॥ ९ ॥
छूट गया तेरामाठ खज़ाना, छूट गये घोड़े हाथी ॥
लाव उपाय करो चाहे वीरन, मौत लिए विन नहीं जाती॥४॥
चेतन छोड़ चढ़ा जड़ देददी, जल गया तेठ रही वाती॥ ५९॥
दाहकार करें घुतनारी; मात पिता इटें छाती ॥ ॥
न्यामत शरण गद्दो जिन वानी; अन्त समय यही काम आती! ७
२५
चाल--आानतेा लगाई परैसी नींद में ॥ देलला ॥
। अरे चातुर वेतन काहे को पढ़े हो जग कप में ।
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