संघर्ष या सहयोग | Sangharsh Ya Sahyog

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Sangharsh Ya Sahyog by श्री शोभा लाल गुप्त - Shri Shobha Lal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १ _ रूप से अपने भाषण में रखा हे । प्रो० केसलर के ये विचार मुमे इतने ठीक और महत्वपूर्ण माद्म हुए कि मैं तुरन्त ही उनको पुष्ठ करने के लिए सामग्री जुटाने में लग गया । केवल एक बात थी कि जिसमें में प्रो० केसलर के विचारों के साथ पूर्णतः सहमत न हो सका । प्राणियों में एक-दूसरे के प्रति जो मुकाव दिखाई देता है, प्रो० केसलर के मतानुसार उसका कारण उनकी 'पेंतक सावना” और नसल को कायम रखने की चिन्ता है । फिर भी सामाजिक प्रवृत्ति के ।वकास में इन दोनो भावनाश्रो का कितना असर पड़ा है, अथवा इनके अलावा अम्य बातो ने इस सम्बन्ध में कितना काम किया है, यह 'एक बहुत बड़ा प्रश्न है । झभी दम इसका विवेचन नहीं कर सकते । यद्द तो हम तभी कर सकते हैं जब हम जानवरों की . मिन्न-भिन्न श्रेणियों में पारस्परिक सहयोग और उनके विकास के 'लिए उसकी आवश्यकता को पहले भलीभांति सिद्ध कर लें । सामा- 'जिकता के विकास का श्रेय पैठुक भावना; को कितना ौर अपने आप सिल-जुलकर रहने की भावना को कितना है, इसका निश्चय भी तभी हो सकता है । कारण कि सिल-जुल कर रहने की भावना तो पशु-समाज के विकास की प्रारम्भिक अवस्था से ही पाई जाती है । इसलिए मैंने विकास के लिए पारस्परिक सददयोग का महत्त्व स्थापित करने की ओर ही विशेष ध्यान दिया है और प्रकृति में चहद कब से शुरू हुई यह खोजने का काम भावी अन्वेषकों पर . छोड़ दिया है । यदि यह साबित किया जा सके कि पारस्परिक सहयोग एक व्यासनियम है. तो यह कहा जा सकता है कि प्रकृतिवादियों की चर




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