मालिक और मजदुर | Malik Aur Mazadoor

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Malik Aur Mazadoor by लियो टालस्टाय - Leo Tolstoyश्री शोभा लाल गुप्त - Shri Shobha Lal Gupt

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श्री शोभा लाल गुप्त - Shri Shobha Lal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक भीषण अन्याय॑ मालिक बन जायगे और वह आपका गुलाम । जिस जमीन पर मेरा जीवन निर्भर हो उस जमीन का मालिक अपने पशु की भाति ही मुझको जीवन-दान दे सकता है-या मार सकता है । हम गुलामी की प्रथा को खत्म करने की चर्चा करते हैं पर हमने गुलामी को उठाया कहा है १ हसने केवल गुलामी के एक विकृत रूप को दास-प्रथा को नष्ट किया है | किन्तु हमको एक श्र गहरी आर प्रच्छुनन गुलामी को जो कही ज्यादा घातक है खत्म करना है । वह है आ्रौद्योगिक गुलामी जिसमें के नाम पर मनुष्य को प्रायः सुल्लाम बना लिया जाता है अपने इसी भाषण के दूसरे हिस्से में हेनरी जाज ने कहा है-- कया आपने कभी इस बात को विच्रित्रता और बेहूदगी पर विचार किया है कि सारी सम्य दुनिया में श्रमजीवी वग सबसे द्रिद्र वरग है १ ...- एक क्षण के लिए सोचिए यदि कोई समभदार आदमी पहले-पहल इस दुनिया में आवे और श्राप उसको यह बतावे कि हम इस दुनिया में किस तरह से रहते हैं श्रौर मकान भोजन कपडे श्रौर हमारी जरूरत की अन्य चीजें किस प्रकार श्रम द्वारा पेदा होती हैं तो क्या वह यह खयाल न करेगा कि श्रमजीवी बढ़िया मकानों में रहते होंगे और श्रम के द्वारा जो भी उत्पादन होती है उसका श्रधिकतर भाग उन्हे उपलब्ध होता होगा किन्तु चाहे झाप उस व्यक्ति को लन्दन ले जाइये चाहे पेरिस या न्यूयाक वह यहीं देखेगा कि जिनको श्रमलीवी कहते हैं वे सच से खराब घरो में रहते हूँ 1 ? सच देशों में यही हाल है । झ्रालसी लोग भव्य राजमहलों में रहते हैं और श्रमजीवी घेरे और गन्दे घरों में । हेनरी जारज आगे कहते हैं-- यह सब कितना विचित्र मामला है जरा सोचिए तो हम सम्भवत दरिद्रता को बुरा कहते हैं और यह उचित ही है कि हम ऐसा करें ।. . प्रकृति श्रम को और सिफ श्रम को दान देती है किसी भी चीज को पैदा करने के लिए मानव-श्रम की पहले आवश्यकता होती है । जो मनुष्य ईमानदारी से श्रौर भली प्रकार मेहनत




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