समाजवाद : पूंजीवाद | Samajvad Punjivad

Samajvad Punjivad by श्री शोभा लाल गुप्त - Shri Shobha Lal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विभाजन केसे करें ? शक साम्यबाद की उपयोगिता का पता लग जायगा ! यदि सडकों की जगह कच्चा रेतीला रास्ता दो रहने दिया जाय तो हमारी तागा, वग्घी आदि सवारियोँ श्रौर चोभत टोने वाली बेलगाटियों हम दडी कष्रकर प्रतीत दोगी । तव हमरों सालूम हो जायगा कि साम्यवाद वास्तव में एक सुविधाजनक व्यवस्था है । साम्यवादी व्यवस्था के श्रनुसार सच की हुई सम्पत्ति से सभी लोगा को समान सुस मिलना है । पुल की तरह जिस चं ज दा व्यदद्दार इर एक श्ादमी करता है; दम राष्ट्रीय सम्पत्ति में से उसी की व्यवस्था कर सकते हैं, या जिससे दर एक वो लाभ पहुँचे वही चीज सामाजिक सम्पत्ति बनाई जा सकती है | पानी को तरह हम शरात्र का ऐसा प्रबन्ध सदी कर सकते कि उसे राराबी जितनी चाहें उतनी पा सके । ऐसी शरीर श्रौर मस्तिष्क को. बिगाड़ देने वाली श्रोर बुराइयों को जन्म देने वाली चीज के लिए तो लाग कर न दे कर जल जाना पततम्द करेंगे | इसलिए जिस चीज वो सब काम में नहीं लेते या जिमकों सब पमस्द नही बरतें उसे समाज थी सम्पत्ति बना सेतो भगडे हो उठेंगे | लोग ब्रागों, तालात्रों, खेल के मैदानों, पुम्नबालयों, चिनशालाश्यों, झन्वेपणालयों, प्रयोगशाला श्र श्रजायचघरों के लिए कर दे सकते हैं; क्योकि वे इन्हे उपयोगी श्रौर सभ्यता के लिए श्रावश्यक समभते हैं । चीजों वा इतना विभाजन छुछ तो वौटस्स्कि साम्यवाद द्वारा श्रीर चुद्ध सड़कों, पुलों द्ादि विषयक चरदाताद्यों के श्राधुनिक,साम्यवाद द्वारा स्या जा सकता है; किन्तु श्रविकॉश वेटवारा दस सपये के रूप में दी करना पड़ेगा । क्योंकि रुपये से दम जो चाहे खरीद सकते हैं, दूसरों को नहीं सोचना पड़ता कि हमको क्या चाहिए । दुनिया में रुपया एक श्रत्यन्त सुविधाजनक वस्तु है । उसके बिना इमारा काम नहीं चल सकता ! उदय, हैं कि रुपया सच बुराइयों की जड़ हे; किन्तु यह उसरा आपराध नदी दे कि दुच लोग उसे भुरयेता थी कजूसीवस श्रपनी श्ान्माद्यों से भी झ्धिक प्यार करते हैं |




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