प्रतिशोध | Partishodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
173
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दृश्य | पहला अक्त ७
विस्व-वंध, हे दुर्गा, काली,
सविंध्य-वासिनी दोवि कराली !
हृदय-रक्ते से वुंदेलों ने पाँव पसारे,
ता चने हैं वे तेरी आँखों के तारे !
रिुसे लोहा लेते तेरे शूर सहारे !
फ्लि रही तू वल की प्यार्ला)
विंध्यवासिवी देवि.. कराली !
विंध्याचल की कठिन कटीली पर्वत-साला ,
यहाँ साधना-दीप सु्तों ने तेरे बाला !
रहे श्रज्वलित वंदेलों के उर की ज्वाला !
श्रमर बदेला-जाति निराली ,
विध्यवासिनी; देवि.. कराली !
[ आरती समाप्त होती है । श्राणनाथप्रमु लाल. सिंदूर
से सब के टीका करते हैं ]
प्राणनाथ--( वालक छत्रसाल के टीका करते हुए ) बेटा, सिंदूर
से भी गहरी लाली से घुंदेलखंड की काली पहाड़ियों को तुम्हारी
तलवार स्नान कराए--यह विंध्यवासिनी देवी की ओर से
प्राणनाथ प्रमु का आाशीवाद है ।
लाल्कुंवरि-( छत्रसाल को विंध्यवासिनी की मूर्ति के आगे
लेटा कर ) साँ ! यह तुम्हारा ही पुत्र है। घु'देलों के आदि पुरुप
ने अपना मस्तक तुम्हारे चरणों में चढ़ा देने में संकोच नहीं किया
था; किंतु, तुम्दीं ने उनका हाथ रोक दिया था; फिर भी तलवार
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