प्रतिशोध | Partishodh

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Partishodh by प्रेमी - Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृश्य | पहला अक्त ७ विस्व-वंध, हे दुर्गा, काली, सविंध्य-वासिनी दोवि कराली ! हृदय-रक्ते से वुंदेलों ने पाँव पसारे, ता चने हैं वे तेरी आँखों के तारे ! रिुसे लोहा लेते तेरे शूर सहारे ! फ्लि रही तू वल की प्यार्ला) विंध्यवासिवी देवि.. कराली ! विंध्याचल की कठिन कटीली पर्वत-साला , यहाँ साधना-दीप सु्तों ने तेरे बाला ! रहे श्रज्वलित वंदेलों के उर की ज्वाला ! श्रमर बदेला-जाति निराली , विध्यवासिनी; देवि.. कराली ! [ आरती समाप्त होती है । श्राणनाथप्रमु लाल. सिंदूर से सब के टीका करते हैं ] प्राणनाथ--( वालक छत्रसाल के टीका करते हुए ) बेटा, सिंदूर से भी गहरी लाली से घुंदेलखंड की काली पहाड़ियों को तुम्हारी तलवार स्नान कराए--यह विंध्यवासिनी देवी की ओर से प्राणनाथ प्रमु का आाशीवाद है । लाल्कुंवरि-( छत्रसाल को विंध्यवासिनी की मूर्ति के आगे लेटा कर ) साँ ! यह तुम्हारा ही पुत्र है। घु'देलों के आदि पुरुप ने अपना मस्तक तुम्हारे चरणों में चढ़ा देने में संकोच नहीं किया था; किंतु, तुम्दीं ने उनका हाथ रोक दिया था; फिर भी तलवार




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