सफल जीवन | Safal Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24.75 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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No Information available about सत्यकाम विद्यालंकार - Satyakam Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ सफल जीवन अ्रपने पास जो कुछ है वह सब संसार में खो देने से ही संसार की धारा प्रवाहित होती है श्रौर इस दान-परम्परा में ही दान का क्रम चल रहा है। इस देने में ही प्राणों में नि्मलता अर श्रोजस्विता रहती है । नदी बूँद-बंद पानी को देती रहती है । इस देने में ही प्राणों में निमलता श्रौर झोजस्विता रहती है । इस निरन्तर देते रहने के कारण ही वह श्रस्तिम बूँद तक निर्मल बनी रहती है । उसका एक-एक कण दशक्तिपुंज बना रहता छोटा-सा बीज श्रपने को मिटाकर ही विज्ञाल वृक्ष बनता है जो अनगिन फुलों से विद्व की झोभा बढ़ाता है । वह वक्ष भी असंख्य वीजों में अपनी प्राण-दक्ति को देकर काल-प्रवाह में लीन हो जाता है । मनुष्य-जीवच इस प्रारा-परम्परा का ही है। जो इस सम्पुर्ण परम्परा में व्याप्त है वह विद्वात्मा है श्र जो इसके रूप में है वह झात्मा । का भंग होने से मनुष्य उतनी सरलता से झपने. सु को नहीं मिटाता जितनी सरलता से अ्रन्य प्रारावान चराचर मिटाते हैं । वह अपने अहम को सुक प्रकृति से ऊंचा समभकर श्रमिट बनाने का प्रयत्न करता है। प्रकृति से उसे जब जो मिलता है वह ग्रहण तो कर लेता है किन्तु उसे झागे प्रवाहित करने में वह कृपण हो जाता है ।
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