राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला | Rajsthan Puratan Granthmala

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Rajsthan Puratan Granthmala by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न का फिगर जोन योर उनके ग्रन्थ दूसरे उपयर्गरी रचनाएं: “- १ निमल,र से ३७०४ माघ, छन्द वहां, दोहा १३, निर्मलकों सतोत्व रखाफी कहानी 1 २ सतवती, र स ३६७८, छुन्द वही, दोहा ५२, सत्तचत्तीकी राकी कहानी । इ. तमीमश्रनसारी,र स 3७०२, चौंपाई 9५०, तमीम 'अनसारीफ पत्नीकी सनात्व हछाफी कहानी । ४ शालयती, र स १६८४, छुन्द यहीं, दोहा २५, शीलवतीकी सतीत्व रंक्ताफी कहानी ४ दिनमें रचित । ५ कुलयता, स 1६९३ पोप॑, छुन्द वही; दोहा ४७ कुलवतीफी सतीत्व रखाकी कहानी । स्वतन्त्र कहानिया- १. यहकियां विदही, रे स 9६८६, चौपाइ १२५, एक लिन में रंचित, ईश्वर प्रेममें पागल धर या पिरहींके एक लोमीके उढारकी कद्दानी । २. भरदेसरकी कद्दानी; र स १६९०, दोहा चीपाई, दोहा २३, दो प्रहरमें रचित । मुक्तक शगार चर्खुन, १, पर्सनार्मक, २, रीति फाव्य वर्सनात्मक -- १. यारदमासा, रस 'नान, सत्रैया १५, पियोग श्र गारका बारहमासा 1 २ मय बररा, र से ज्ञात, वरवा ७०, सग्रोय पियौग पद ऋतु वर्यन । है. पर ऋतु यरया,र से श्वलात, बरया २९, पद ऋतु वर्णन । ४ पर करतु परम, रे से श्लात, पवमस पू २ पद ऋतु घणन । ( पिराषता--'थत पदोंदो श्रेडररण जौ सारित्रे 1 सीं यरया सप है दे मरे पिचारिश्े ष ५. पूचटनामा, र स अज्ञात, दोद्दा चौपाइ ४, पृष्ठ, यौवन च घूघटका दर्यल 1 ६ सिंगारनसद,र से १६७३, दोहा कण, स्थियोंके शद गारका चणन, ३ दिनमें रचित । है माविसत, र से १६७१, पृष्ठ ६, मद सार रख, २ दिनमें रचित । से पिरदसत, रे से १६७१३ दादा, १०० १ प्रसनामा, रे से अअपात, सौपाइ २ १० झलक नामा, रे से श्रचाठ, ११ भर जे ४ # पियोग श्र सार, 'थ लिनमें रचित । १ “घूघट रसेल दुरस परसाय” । चौपाइ ९३, घनझोंकि सीदर्यका बन । द्रसन नामा, रे से अपात, लौपाइ ३३ | भारदमाग्ा, र से अनात, पुष्ल रे, पुषिनिंग छन्द । मंमसायर, र से १६९४, दादा >४, प्रेममदिमा । वियागसार, र से १9१४, रादा, सर्दया, पप्द १६, दिरह बणून । ५ कादपरलाल,र सा अनात, किस स्वैया, पुन डर, थ गाररस सुक्तक छुन्द । परतिमें




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