महादेवभाई की डायरी | Mahaadevbhaaii Kii Dayarii
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
411
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नरइरी द्वा० परीख- Nariri Dwa. Pariikh
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रामनारायण चौधरी - Ramnarayan Chaudhry
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)या ज्यादातर अछूतोंकी माँग अलग मताधिकारके लिझे थी । और मैं चाहूँगा कि
आप उझिसमें यह ज्यादा स्पष्ट करें कि अछूतोंको अलग मताधिकार देकर जनताके
दारीर पर भर्यंकर आघात किया जा रहा है । वैसे बहुतसे भीमानदार अंग्रेज भी
जिसे समझ नहीं सकेंगे 1” बापू बोले -- “ जिससे ज़्यादा सफाओ देने बेठेंगे,
तो यह बयान करना चाहिये कि मुसल्मार्नोका जिस काममें क्या हिस्सा रहा ।
जिससे मुसलमानोंकि साथ बेर बढ़ेगा । यदद तो डेसा ही हुआ जेसा झुस २१
दिनवाले झुपवासके समय हुआ था और मुदम्मदअलीने कितने ही वाक्य निकलवा
दिये थे |” मैंने कददा -- “ कुछ छोग कहेंगे कि हिन्दू समाजने जो पाप किया
है झुससे भी यह' पाप भयंकर कहलायेगा कि झुनके खिल्यफ अप्रपको अनदान
करना पढ़ा १? ” बाएु बोले -- “हम तो हिन्दू समाजसे झुसका पाप घुलवा रहे थे। .
यह कृत्य तो झुस पापको स्थायी बनाने जैसा है या सुसे न धोने देनेके बराबर
है । देशमें ग्हयुद्ध करानेंके सिवा जिसका और कोओ नतीजा हो ही नहीं
सकता; -- युद्ध सबर्ण हिन्दू ओर अछूतों तथा हिन्दू और सुसछमानेकि बीच होगा । ”
ं वल्लमभाओने कहा -- “' मेरी तरफसे तो अब भी जिनकार है, मगर
. अब आपको जेसा ठीक कगे वेसा कीजिये । ”
बापू पत्रको सुधारने बेठ गये, और सुघारकर सो गये ।
रातको बारह जेक बजे तक मुझे नींद ही नहीं आयी । पौनेचार बजे
प्राथनाके छिमे जागे । मुँह हाथ धोकर प्रार्थनाके लिझे बैठे; तो बाएने प्राथनाका
क्रम सुनाया -- “ वल्लभभाओीसे श्लोक बुख्वाते हैं । जिन्हें संस्कृतका ज्ञान जरा
भी न होनेंके कारण झुश्चारण बहुत अझुद्ध दोते थे । डिसलिजे मैंने विचार किया कि
जिन झुन्ारणोंको सुधारनेका जिसके सिवा दूसरा रास्ता नहीं । तुम देखोगे कि बहुत
फरक पढ़ गया है। भजन में बोलता था । जबानी तो कुछ था दी नहीं; जिसलिे
इम तो अेकके बाद अेक भजन लेकर पढ़ेने ठगे। आज मराठी शुरू करनेवाले थे ।
अब तुम रामधुन और भजन चढाओ । ” मेंने बापूसे ही रामघुन चलानेको
कहा । यह बात रातको हुआ थी । मैंने पहला भजन “ प्रभु मोरे अवगुण चित
न घरों” गाया । जिवके सिवा में और क्या गा सकता था!
सुबह प्राथनाके बाद सोनेकी कोशिश की, मगर न सो सका । सुबह चाय
पीनेका मैंने तो हाँ कहा था । वल्लभभाओीसे पूछा कि क्यों;
११-३-३२.. आपने चाय पीना बन्द कर दिया है? तो वे बोले -- “ यहीँ
बापूके साथ अब क्या चाय पियें ! मेंने तो तय कर छिया है कि
वे जो खायेँ सो खाना । चावल छोड़ दिया, ओर साग अुबालनेका निश्चय किया
औओर दो बार दूध रोटी खानेका । बाए भी रोटी खाते हैं ।” नवायके बिना न
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