शाशिगुप्त | Shashi Gupt

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Shashi Gupt by सेठ गोविन्ददास - Seth Govinddas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(र३ /) दा खड़े हुए और उन्होने उसकी रक्षा की । उनमें से एक बुरी तरद घायल हुआ : और, दूसरा ' मारा गया । सिकन्द्र की गदन पर एक मोटे डंडे का बहुत हो तुला. हुआ हाथ लगा, जो अन्तिम प्रहार था ।-तत्पश्चातू उसके ' सेनिक दीवार तोडकर वहाँ घुस छाये और उसे मूर्छित दशा में अपने शिविर पर ले गये । इस घटना के कारण क्रोघान्वित्त यवन सैनिक नगर-निवासियों पर टूट पढ़े श्ञोर स्त्रियों तथा बच्चों सहित सबका बघ कर डाला ।” - , युनानी सेना ने समस्त सिंध में जैसा पाशविक श्त्या चार किया वैसा मानव, इतिहास में मिलना ,कठिन, है । प्रत्येक स्थान पर सिकन्द्र के प्रति कट भावनाएँ जायूत हो गयी ,थीं । उसको 'झपनी जान बचा कर भारत से लौट जाने के लिये रक्तपात आवश्यक हो गया था । सम्भवतः: सिकन्द्र का विचार भारत से समुद्री रास्ते से निकल भागने का था, परन्तु उस सागं, से जाना झसम्भव था । वह श्गस्त मास में हिन्द मद्दासागर मे पहुँचा और इन दिनो वहाँ प्रतिकूल दृवाएँ चलने लगती है । यद्द देखकर सिकन्द्र ने, अपने सेनानायक नियारकस की दअध्य- च्ता में बेड़ा छोड़ दिया और स्वयं अधिकांश सेना सहित मकरान की मरुभ्रूमि से भाग निकला ।- :बिलोचिस्तान की सब जावियाँ भी सिकन्द्र के विरुद्ध खड़ी दो गयीं। बड़ी कठिनता से उसने कुछ के वश मे किया श्और वहाँ से कुछ रसद प्राप्त की । परन्तु जैसे ही वद्द '्ागे रेगिस्तान की योर बढ़ा कि उन्होने वहाँ नियुक्त किये गये उसके क्षत्रप एपेलोफेनिस का बध 'कर डाला | इस प्रकार वहाँ से रसद पाने की सम्भावना भी जाती रही । प्राचीन येरिपिय इतिहासकार स्ट्रेबो ने सकरान-मथ भूमि में सिकन्द्र की इस यात्रा का निस्न विवरण दिया है-- “सिकन्द्र के लौटते समय अपनी समस्त यात्रा में बढ़ी बड़ी विपत्तियाँ सदन करनी पढड़ीं । उसका माग॑ संकटपूर्ण श्औौर वीरान प्रदेश से होकर थां। रसद के लिये भी उसे बहुत परेशान होना पढ़ा । वद्द दूर दूर से लानी पड़ती थी । वह भी कभी कभी . मिलती




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