कवि सम्राट 'हरिओध ' और उनकी कला कृतियाँ | Kavi Samrat Hari Audh Aur Unki Kala Kartiya

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Kavi Samrat Hari Audh Aur Unki Kala Kartiya by द्वारिका प्रसाद - Dwarika Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र--योषन-परिचयम ही इस तरइ आपके झदय में प्राकृतिक सौदय के लिए, एक विशिष्ट स्थान था, परन्तु मानवीय सौंदर्य के भी ्ाप सरुचिपूर्ण दर थे । द्यापकों स्वमाव गस सबसे बड़ी विशेषता हो यह थी कि आाप सौंदय फ पुभारी थे । सह सौंदर्य किसी मी प्रकार का क्यों मे दो, इरियौष यों को झाकर्पित किए, विना नहीं रइदा था । तथा कला रात सौंदर्य तो आपको विमुग्ब कर दंते थे । पं० गिरजादत्त शुक् गिरी” ने लिखा है--“माधुम्प कद्दीं मी हो इरिझोभ सी को वह बहुत प्रिय है । शरीर का साधुर्स्य, विचित्र मानसिक परिस्थितियों का माधुस्थ, काम्य का माधुर्यय उनके झुदय को विमुंगग धौर सरस कर देतेहें » >६ # >> उनके अनुराग रंसिस द्ृदम का स्मरण करके में उन्हें न साने कितने समय स उमर लैयाम दो का झापुनिक हिंदी अवतार मानता शा रहा हूं ।” आपक इुदय में कविता क॑ साथ-साथ संगीत वे लिए; मी शरत्यघिक अनुराग था 1 अपने इदय की इस संगीत ननित पिपासा की शान्ति पे लिए, वे किसी मी स्थान पर निस्सकोच याने के क्षिए तैयार रदते थे। आपकी संगीत ममझुता का आमास श्ापकी फुटकर रचनाओं में मिलता दै। समाचार पर्रों के पढ़ने का मी थापकों ब्यमन सा था । अपने समा तथा जाति की समी छोटी -भड़ी सुराइमों को मानना तथा उनके निराकरण कं लिए मार्ग स्टोन निकालना दी '्ापकों सचिकर था | शाप सँच-तीच की भावना को दिन्दू जाति के लिए; अत्यन्त अझदिसिसर सापते थे । आपके विचार से कोशंमी घमे बुरा न था । सभी धर्मों से सारंपूर्ण भादे प्रदय करना दी ्ापकों प्रिय था । झाप मप्नन पूजा में बपना समय न्यर्य ब्यय नहीं करते थे, परन्द सनातन भर्म एव उन धर्म-पन्यों में शापशी शनन्य झास्या थी | चेदों कि भाप शान का भंदार मानते थे और उसके शान का प्रमार होना | दो मारत के लिए; भेयस्कर सममसते ये! शाप अघ परम्परा में विश्वास न्ीं रखते थे । साथ दो आपकी प्रद्त्ति एकेश्यर घाइ को शोर हो थी । उसी देवी देवताओं के प्रति भ्द्धा प्रकट करते हुए झाप उं झसाघारण मानव (१) वही प० रे




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