अंतिम तीर्थंकर महावीर | Antim Tiirthakar Mahaaviir

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Book Image : अंतिम तीर्थंकर महावीर  - Antim Tiirthakar Mahaaviir

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जन धर्म को ज्योति जन धर्म के सम्बन्ध में हम अपने विचार इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं --“'जहां अनेंकान्त दृष्टि से तत्त्व की मीमांसा की गई है, अर्थात्‌ प्रत्येक वस्तु के अनेक पहलुओं पर विचार करके सम्पूर्ण सत्य की अन्वेषणा की गई है, खण्डित सत्यांशों को अखण्ड स्वरूप प्रदान किया गया है जहां किसी प्रकार के पक्षपात को अवकाश नहीं है, अर्थात्‌ शुद्ध सत्य का ही अनुसरण किया जाता है, और जहां किसी भी प्राणी को पीड़ा पहुंचाना पाप माना जाता है, वही जन धरम है । आचार सम्बन्धी अहिसा, विचार सम्बन्धी अहिसा, अर्धात्‌ सत्य एवं स्याद्वाद का सम्मिलित स्वरूप ही जन धर्म है ।”' जन धर्म की दिव्य-ज्योति का आविर्भाव इस भ्रूतल पर कब हुआ, इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी कह सकना अत्यन्त कठिन है। इसका कारण यह है कि जेन धर्म का प्रवर्तन नतो किसी महापुरुष के द्वारा हुआ है, और न किसी विशेष ४




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