कुतब शतक और उसकी हिन्दुई | Kutub Satak Aour Uski Hindui

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Kutub Satak Aour Uski Hindui by माता प्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पड़ना है तो आश्चर्य न होना चाहिए। किन्तु इससे यह न समझना चाहिए कि वर्णित कथा सवंधा कल्पित है। रचनासे कल्पनाके पुटके साथ वास्त- विकताके तत्त्व होगे, ऐसा स्पष्ट ज्ञात होता है। किन्तु कथा, कथा ही है, इतिहास नहीं । इसलिए यदि इतिहासके साक्ष्य उसकी पुष्टि न करते हो तो भी रचनाका सहत्व एक ऐतिहासिक लघुकथाके रूपमे निश्चित है और निस्सन्देह यह रचना मुगल साम्राज्यकी स्थापनाके पुबंके भारतीय वायुमण्डलमे पनपते हुए सुफी दशंनसे प्रभावित इस्लामी जीवनपर अच्छा प्रकाश डालती है। यह कहना अनावइ्यक होगा कि हिन्दीमे अपने ढगकी यह अकेली रचना है, भारतकी अन्य भाषाओमे भी कदाचित्‌ ऐसी रचनाएं कम ही होगी । रचनाकी कथा-सम्पत्ति रचनाकी क्था-सम्पत्ति साधारण है । नायक-नायिकाके जीवनकी दो ही घटनाएँ सामने रखी गयी है एक हैं उनका पति-पत्नीके रूपमें बेँबना और दूसरी है कुछ बहुमूल्य पात्रोका तोड़-तोइकर फकी रोमे वितरित्त करना । पही घटनाके लिए कवि एक चनुरतापुर्ण युक्तिका आश्रय लेता है वह एक ढाढ़िनीकी कत्पना करता हे जो मालिन, बैद्या और ढाढिनी--तीन रूपोमे कथाकों आगे बढाने समर्थ होती है । मालिन बनकर वह शाहजादेसे साहिबॉँ- के रूपकी चर्चा करती है और उसे उससे मसिलनेके लिए प्रेरित करती है, शाहजादेके विरहोन्मादका वेंद्या बनकर उपचार करती है और जब दोनों विवाहु-द्वारा एक द्रसरेकों प्राप्त करते हे, सेहरा और मिलन-यामिनीके गीत गाकर उनका मनोरंजन करती है। इसके बाद ही वह कथासे अलग हो जाती हूं। इस प्रकारकी दूतीकी कत्पना मध्ययुगम बहुत प्रचलित रही है, और रचनामे इस विषयमे कोई विशेषता नहीं दिखाई पड़ती है । उसके द्वारा किया हुआ रूप-वर्णन, और नायिका तथा नायकके रोगोका निदान अवध्य सरस ओर विनोदपूर्ण है । दूसरी घटनाके लिए नायिका-द्वारा एक बहुमूल्य प्यालेके फूटने और उसके कारण उसकी सासके कुपित होनेके प्रसंग जुटाये गये है । इस दूसरी घटनाके पूर्वे कविने दो छोटे-छोटे सकेत और रखे है जो आनेवाली घटनाके लिए पाठककों तैयार करते है एक तो गायको-द्वारा योग (ज्ञानयोग) और भोग (प्रेमयोग) के गीतोका गाया जाना--और यह सोचकर गाया जाना कि दोनों विषयोमे-से पता नहीं कौन-सा नायक्र को रुचे, दूसरा दो नटिनियोका हम कुतबदतक भोर उसकी दिन्दुई




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