अजेय खण्डहर | Ajey Khandahar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यही सोवियत संस्क्रति बिरती
पू'जीवादी . दुनिया. में
जिसकी उन्नति देख रहे हैं
स्वाथ भरे जन दिल धाम
आज कितु अणु अगु से उठती
महा सास्य ध्वनि गीतों
मानंब निमाता हें जग
नव रचना की जीतों
पर न सोधियत के बाहर
ऐसा. दृश्य मधुर सन्दर
मानव कर न विभाजन पाया
अपने उत्पादित श्रम पर
वाज हाय यह भूला मानव
भटक रहा हैं डगर डगर
उसका असंतोष छाया है
इस जीवन की लहर लहर
यहाँ निरंतर शोपण होता
एक दूसरे का अविरतू
यहाँ मघर श्रम बह जाता है
रह जाता जन मूक दुखित
रंग भेद से बनी सभ्यता
बग भद से विकल समाज
जन्म भेद से सुख दुग्य मिलते
जीवन भर बिकृत अभिशाप
यहाँ स्वप्न सपने ही. रहते
जासत मानव रोग ग्रसित
यहाँ वासना के दुब्त्त पशु
शपसानों में पड़े दुपित
अधिकारों के अहंकार में
जीवन नित्य नई पीड़ा
ग्रहमाँ ज्ञान का दीपक धु घला
जलता हैं, कायर कीड़ा
जा 7 सर अं
१६
एक भार सा यौवन ता
जिसमें ४ स्वार्धा' की तष्णा
और जरा में मानव झुकता
घर. रहीं. आंधी कृष्णा
यहाँ परस्पर द्वंप कलेश में
अपनी ज्योतित राह मुला
च्तग्प-भंगुरता के पाशों में
नियम हीन जीवनी भुला
बना लिया भगवान ण्क है
एकच्छत्र. प्रबल शोषक
घम न्याय का दंड वर्ग-सुख
अअत्याचारों का... पोपक
रन्घ रन्घ में असन्तोप है
तंतु॒तंतु में शोक रहें
प्रकृति नियम से यह विरोध
कर अंधकारमय आओक करें
यहाँ म्रत्यु की मीठी निद्रा
में यह. मूखव कांप डरता
यहाँ युगान्तर का प्रकाश भी
तम में बद्ध विकल रहता
हिंसा की स्वार्थी ज्वाला में
सत्ता का है. युद्ध मचा
यहाँ रक्त के प्यासे मानव
प्रकृति सासम्य ही नहीं बचा
जीवन भर श्रम करता कोई
नहीं पेट भर खा पाता
और अआलसी वर्ग मजे में
अधिकारों का. निमाता
यहाँ स्त्रियाँ हैं पेट दिखाती
_ बिकती हैं दर दर भूखी
यहाँ स्वामिनी दासी ही हैं
उतगी सी. ढुगेम गुत्थी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...