शिवराज - भूषण | Shivaraj - Bhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( दू ) कुछ लोगों का कहना है कि भूषण ने उस छुडवेशी व्यक्ति को प्रथम भेंट के अवसर पर केवल एक ही कवित्त १८ बार या ४५२ बार न सुनाया था. अपितु भिन्न-भिन्न ५२ कवित्त सुनाये थे, - जो शिवाबावनी ग्रंथ में संग्रहीत हैं । और शिवाजी ने उन्हें ५२ हाथी, ५२ लाख रुपये तथा ५२ गाँव दिये थे। कुछ भी हो, इतना निर्विवाद है कि भूषण के कवित्त शिवाजी ने स॒ने श्रवश्य थे श्र प्रसन्न हो कर उन्हें प्रचुर घन भी दिया था। कहते हैं कि भुषण ने उसी समय नमक का एक हाथी लदवा कर झपनी भाभी के पास मेज दिया । शिवाजी से पुरस्कृत होने के अनन्तर भषण उनके दरबार में राजकर्वि पद पर प्रतिष्ठित हुए श्रौर वहाँ रह कर कविता करने लगे । दिन्दूजाति के नायक तथा 'हिन्दवी स्वराज्य की स्वेप्र थम कल्पना करने वाले शिवाजी के उन्नत: चरित्र को देख कर महाकवि भषण के चित्त में उसको भिन्न मिन्न अलंकारों से पित कर वर्णन करने की इच्छा उसन्न हुई%#। तदनुसार शिवराज-मृषण नामक . ग्रंथ की रचना हुई, जिसमें भूषण ने अलंकारों के लक्षण दे कर उदाहरणों में अपने चरित्र-नायक शिवाजी के चरित्र की भिन्नसिन्न घटनाओं, उनके यश, दान श्रोर उनकी महत्ता का अ्रोजस्वी छत्दों में उल्लेख किया । वीर रसावतार. नायक के अनुरूप ही ग्रंथ में भी वीर-रस का ही परिपाक है । यह ग्रंथ शिवाजी के राज्याभिषेक से प्रायः एएक वष पूर्व संवत्‌ १७३० में समाप्त हुआ, जो कि उसके छुन्द संख्या रेपर से स्पष्ट है। कुछ लोग उसकी समाप्ति सबत्‌ १७३० में कार्तिक या श्रावण मास में मानते हैं, ्रौर कुछ लोग प्रथम पंक्ति का पाठान्तर करके उसकी समासति ज्येष्ठ कृष्ण चयोद्शी को मानते हैं । पिछले मत के पोषक. अधिक हैं | यहाँ पर यह प्रश्न विचारणीय है कि भूषण शिवाजी के दरबार में कब पहुँचे, और वहाँ कब तक रहे । इस प्रश्न के बारे में भी हमें भूषण के ग्रन्थों का ही सहारा लेना पड़ता है। भूषण ने शिवराज-भूषण के श्४वें दोहे में लिखा हेः-- *# शिव-चरित्र लखि यों भयो कवि भषण के चित्त । भाति-भाति भषणनि सों भपषित करों कवित्त ॥|




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