हम्मीररासो | Hammerraso

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Hammerraso by श्यामसुन्दर दास - Shyamsundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) काई ते बेगम के पास तक झा पहुँचे शरीर उसे शाही शिविर मे लिवा ले गए ।. रूपविचित्रा को पाकर श्रल्ञाउद्दोन द्रत्यत प्रसन्न हुमा । जब श्रोष्म का झंत हो गया श्रौर पावस की घनघार घटाएँ घिर घिरकर झाने लगों तब श्रलाउद्दोन ने लश्कर सहित दिल्‍ली को कूच वर दिया । दिल्ली के राजमदल मे एक दिन श्राधघीरात का जिस समय अल्लाउद्दोन रुपविधित्रा के पास बैठा था, उसी समय एक चूहा झा निकला ।. उसे देखते ही बादशाह का काम ब्वर जीशें हो गया, कितु उसने किसी प्रकार सम्हल्कर उस चूहे का लक्ष्य करके एक ऐसा बाण मारा कि वद्च घह्दी मर गया | चूहे का मारकर श्रलाउद्दीन की प्रसन्नता का अंत न रहा, इसलिये उसने रूपविचित्रा से कहा कि मैं जानता हूँ कि छियाँ स्त्रभाव से ही कायर होती हैं, इस लिये मैंने यह पुरुषार्थ प्रगट किया है। यह सुनकर रूपनिचित्रा से सुस्कराकर कहा-- पुरुपार्थी सनुष्य वे होते हैं जो इसी श्रवस्था से सिद्द को सददज ही मारकर शेखी की बात नहीं करते । बेगस की ऐसी बाते” सुनकर श्रलाउद्दीन आश्च्य्य श्रौर क्रोध के समुद्र में गाते खाने ज्नगा, किंतु उसने अपने को सम्हालकर कहा कि जा तू ऐसा पुरुष मुझे बतला दे ता सैं उससे बहुत हो प्रसन्ततापूर्वक सिल्ूं प्रथवा उसने सेरा कैसा ही श्रपराध क्यों न किया' हा से सवधा उसे चामा करूँ । तब बेगम से श्रपने श्रोर मीर सहिसाशाइ प्रति भूत वृत्तात के सह सुनाया




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