राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला खंड 31 | Rajasthan Puratan Granthmala Part 31
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.93 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni
No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni
रामकृष्ण भंडारकर - Ramkrishna Bhandarkar
No Information available about रामकृष्ण भंडारकर - Ramkrishna Bhandarkar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)5 2, हे डा गन मद 2 उप उस ९, मय सेल सकने प्यार न बन नाप रथ पथ कर था था पे 2 कक कर अन्य न लय कण व गा फेज शक कल्प, .. लव नि किक
सब फायर डिक नम कप पक सर उप: सिर कर ना दा पा डे १ पक दा गम फिर ७... कक मा.
दि
# राजस्थान में संस्कृत साहित्य की खोज + [8
दानवाक्य समुन्नय - योगीश्वर कृत 1 ।
रूपनारायशीय - उदयर्सिह राजराज कृत । 'रूपनारायण” उदयसिंह के एक बिरुद को
बताता मालूम होता है। क्यों कि यह प्रतापस्द्र 'गंजपति” के बहुत से बिरुदों में से एक है
जिसके नाम पर प्रतापमार्तएड - का निमीण. क्रिया था । मिथिला में वैकल्पिक नाम बाले
जिनके अन्त में 'नारायण” ाता है, कई एक राजा हुए । ऐसे वैकल्पिक नाम वाले राजाओं
में एक रूपनारायण है. (डफक़त क्रोनोलो जी प्र० ३०५) । झाक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के पुस्तक्रालय
में रुपनारायणीय की एक हस्तलिखित प्रति है * जिसका समय डा० बाफ्रेट ने सन् १६४५०
इस्वी बताया है । इसलिये इस पुस्तक की समाप्ति १५३० ईस्वी में होनी चाहिए ।
गायत्रीविवृति - श्री अभूताचाये कृत ।
आचारदीपिका - दीक्षित गोविन्द के पुत्र नारायण कृत ।
प्रतापसात्तरड - पुरुषोत्तमदेव “गजपति के” पुत्र प्रतापर्द्र कृत । यह 'गजपति” और
रूपनारायण जंसे बिरुदों से अलंक्रत है । उनमें से एक बिरुद 'नवकोटिक्शीटक कलवरगेश्वर'
है। हाल ने कल के बदले में केरल पढ़ा मालूम होता है या कल को गंलत पढ़ लिया हो और
उन्हें पता नहीं कि बरग का क्या उपयोग हो ( कस्ट्रीब्यूशन, प्र० १७४ ) । मुझे विश्वास है
कि कलवरण कुल्बग है ।
दानप्रदीप -भट्ट माघव कृत । गुजरात में करण के राजा राघव ने प्रन्थकत्तो के पू्वज
वासुदेव को आमन्त्रित किया था जो दधिबाहन से ब्याया था। चह टोलकीया जाति का 'झौदीच्य
था । वासुदेव के वंशजों का क्रम इस प्रकार रहा है:--नरसिंह, दीघ, राम, विष्गुशम्मी श्र
मट्रमाघव । * '
गृह्मप्रदी पकमाध्य - श्रीपति के पौत्र और श्रीकृष्णजी के पुत्र नारायण द्विवेदीकृत ।
स्मार्ता्लास - पुष्करपुर “निवासी” निम्बाजी के पुत्र शिवप्रसाद पाठक कत। शक १६१०
या १६६० ( खगो नृपति ) शक में इसका नि्ाण । इसीं ग्रन्थकत्ता द्वारा रचित एक
प्रतिष्ठोज्लास, उपरितन भाग में ( प्रष्ठ ४ पर ) देखा गया है. और मध्य प्रास्त में कीलह्दो नें के
हस्तलिखित पुस्तक सूचिपत्र में यह श्रौतोल्लास नाम से भी मिलता है।
धंमशास्त्र सुघानिधि ( देखिये प्रष्ठ ४ ) प्रायखित्त मुक्कावली -. भारद्वाज. महादेव भट्ट
के पुत्र दिवाकर कृत. । किक
|
के *
संस्कार गणपति, कार्ड १ व २ श्औौर श्राद्ध गणपति । ... .
काणव कण्ठाभरण शौपासनबिधि - बाजसनेयि अनन्त भट्ट कृत ।
पे निणय - श्री के पौत्र और 'पाठंक” रामचन्द्र के पुत्र गंगाघर कृत ।
रुद्रकल्पद्रूंम - उद्धवं के पुत्र अनन्तदेव कृत । न,
..... स्वानुभूतिनाटक - परिढर्त के पुत्र छामन्त परिडत कृत । हस्तलिखित प्रति का
सम्बत् १८०५ है. । लक कि
. :.. गद्यारबिन्द वेजयन्ती - धर्माधिकारी नन्दपंडितके पौत्र और वेणी पंडितके पुत्र गोपीनाथ कृत
न
1 ये और ऐसे ही अंक परिशिष्ट र्में उद्धृत अन्थांश को बताते हैं।.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...