अनित्य भावना | Anitya Bhavna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
53
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नित्य-भावना षथ
तस्मात्तरपरिचिन्तनी यमनिशं संसारदुःखप्रदो,
येनाइस्य प्रभवः पुरः पुनरि ग्रायो न सम्भाव्यते ॥४॥।
काया जननी दुःख-मरणकी हुआ योग यदि यासे ;
तो फिर शोक न बुघजन कीजे मरते वा दुग्व आते |
त्आत्म-स्वरूप विचारों तब तो नित तज अआकृुलताई
संभव हो न कभी फिर जिस से देह-जन्म दुखदाई 1४५1
भावाथ--काया तो दुःग्व और मसणकी जननी है--दुःख और
मरण इसीसे उत्पन्न होते हैं । यदि काया (देह) न हो तो द्रात्माकों दु्स्व
भी न उठाने पड़ें और मरण भी न हो सके । जब कायाके साथ अ्त्पाका
सम्बन्ध है तो फिर दुःख शधवा सरणके उपस्थित होने पर, जिनका
सम्बन्घावस्थामं होना अवश्यंभावी है, बुधजनोंको शोक नहीं करना
चाहिये | प्रत्युत इसके, उन्हें तो नित्य ही निराकुल होकर चहिरात्म-बुद्धिके
त्यागपू्वक ्रात्मस्त्रूपका --श्रपनी मुक्तिका--विचार करना चाहिये; जिससे
दुखदाई देहका पुनः पुनः जन्म ही संभव ने रहे |
दुर्बाराजितकमकारणवशा दि्टे प्रन्रे नरे ,
यच्छोकं कुरुते तदत्र नितरामुन्मत्तलीलायितम् |
यस्मात्तत्र कृते न सिद्धयति किमप्येतत्परं जायते ,
नश्यन्त्येव नरस्य मूढमनसो घमाथकापादयः ॥६॥।
दुर्निवार-निज कमं-हेतु-बश इष्ट स्वजन मर जावे ;
जो उसपर वहुशोक करे नर बह उन्मत्त कहावे ।
क्यों कि शोकसे सिद्धि नहीं कुछ, हाँ इतना फल होवे ,
मूटमना वह मानव अपने धर्मार्धादिक स्वोचे ।!5॥।
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