रासमाला | Rasmala

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Rasmala by गोपाल नारायण - Gopal Narayanमुनि जिनविजय - Muni Jinvijay

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आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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गोपाल नारायण - Gopal Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रे) घमकर रास, वात्तांएं शरीर लेख एकत्रित करने की सुविधाए' और सावन देने का प्रवस्घ कर दिया था । लोगों के अज्ञान, ईर्ष्या श्ौर लोभवत्ति के कारण जो वहुत से बिघ्न हसारे सार्ग में झाये उनका यदि से यहां पर बन करू तो पाठका का मनोरब्जन तो अवश्य होगा परन्तु वे उससे उकता भी जावेंगे । जो थोड़ी सी बाते झागे लिखी जा रही हैं. उन्हीं से पाठक इनका अनुमान लगा सकेंगे । कुछ लोगों की धारणा थी कि मुझे सरकार ने छुपे हुए खजाने हूँ ढने के लिये नियुक्त किया था, कुछ लोग सोचते थ्रे कि सरकार उनकी जमीने खालसा करना चाहती थी और मेरा यह काय॑ उनके अधिकारों में घुटियोँ दूढने की दिशा से हो रद्दा था; मुक्ते ऐसी भी सूचनाय दी गई कि किसी चंश बिशेष के भाट की चद्दी में से नकल करवाने का उचित पारिश्रसिक उसको एक गांध का पट्टा कर देना होगा । अन्त से, सरकारी कार्येवश में वाघेला भाला और सोहिलवरश के ठाकुरों के सम्पके सें आया आर सुझे तुरन्त हो साजूस हो गया कि साटों ओर चारणों को ख़ुशामद करने अर उनको लालच देने की अपेक्षा इन परपरागत्त सम्सान्य ठिकानों के स्वासियों से प्राप्त होने वाली थोड़ी सी सी सूचना अधिक लासप्रद और उपयोगी सिद्ध होगी । मे महींकाटा का पोलिटिकल एजेन्ट था इससे उक्त विचार के 'अनुसार राज्य-कमंचारियों की सहायता से मे इसी प्रान्त सें अपना काम पूरा करने मे समय हुआ, इत्तता ही नहीं अपितु गायकवाड़ के राज्य से भी सु ऐसी ही सुविधाये प्राप्त हो गई (यद्यपि पहिले तो एक चार चहां के अधिकारियों ने इसको अच्छा सहीं समझा था) ओर बड़ौदा सर- कार की ओर से पाटण के सूचेदार वावा साहिब की कृपा से मुभे छ््या- श्रय की एक प्रति छोर अन्य बहुमूल्य सामग्री प्रात हुई । ये वस्तुये मु अणहिलपुर से मिली थीं जो ऐसी आकर्षक वन्तुओं का केन्द्र है । मेरा ' शोधकायें प्राय: बोशिल दफ्तरी कत्तव्या को पूरा करने से बचे हुए समय में चलता था । मेरी शोध जेन धन्थों ोर भाटों की बहियों तक ही सीमित नहीं थी, अपितु मेने हिन्दुओं के श्रत्येक प्रचलित रीति रिवाज का भी ष्यानपूवेंक अध्ययन किया 'और विशेषत'




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