अर्जुनमालाकारम (गद्यकाव्यम) | Arjunmalakaaram (Gaddhkavyam)
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)् झाजुनमालाकारे गद्यकाब्ये
नपार्िमतम् । प्रजा हि जीवन राज्ञाम् प्रजा हि सुले राज्यस् प्रजा
पिरेबा-बलाप्यो मवति सम्मानसूचकरि द्रनाथादिशब्द । ने स्मयते
किसु प्रथम क्ष्मापति रादीश्वरो विनीतावास्त यैरेव योग्यो निर्वाधित्' ?
बहुल ते किमुत पिशित्लोलुप शिशुभक्ष णापर: सौदास प्रभाभिरेव
सित शीघमयोध्यात । कि बहुंगा प्रजापालनमेव राज्ञा धर्म
नहि प्रजा शोपण किन्तु । किब्चिदसमवहिते हि राजन्यनेकेज्नर्था
समुद्मवन्ति राष्ट्र पु, भूरय उपप्लवा झनुभूयन्ते त्त्रत्म॑प्रतिपल
सशेरत जनानामम्त करणानि विलीम ते 'च सबभपि प्रकृतीना कल्पि
तमनोरथा क्षीम'ते प्रतिपद सपद सततमत सावधानेन वसुमती
पतिना भाव्यम् ।
निगदन्ति नीतिकोविदा श्रषि इंदमेव-- धमपरे राशि सर्वा
दिशो भवन्ति प्रजाना कामदुधा नि सशय मोदन्ते मनुजाना मानसानि
स्वात श्यमनूभवन्ति चत्वारोश्पि वर्णा ऋतवों नातिक्रामन्ति स्वमा
तव धमम विलसति शस्पश्यामला राजवती वसुधा गृहे-गृहे
'राजन्ते नैचिक्यो गाव सकीणानि स्थुग हमेषिना प्राज्णानि पुर
पौधवृन्दे परेपा पतितमपि स्वापतेय स्वीकतु नोत्सहन्ते मर्त्या'
मातर इव महीयन्ते तत्राश्परमहिला साधु सम्मान्यन्ते महनीयवू्ता
मुनय' श्रमुलड़ ध्यमामनन्ति गुरुअनवचनप्राकार लघीयास शुश्र
विश्नाजते तत्र सौभ्ना प्रेम नहि मंत्त मात्रा साथ कलहायतते
कुलवध्व संतुनियन्ते गहागताध्तिथय नहि स्थात् तंत्र चौर-पार
दारिक-वब्चक-पश्यतोहराणा च प्रायिकोब्वकाश इत्यादिसूक्त
सामाजिकान् परितोपयति सम स' ।
पुन स॒मम्भासारो भगवता चतुर्स्त्रिशवतिशयेरतिशयिता
नाम प०्चनिशद्गीगुरशर्मिशदब्यास्पामानाम काममिथ्यात्वाशान
भ्रमुखरष्टादशदोवैरप्रक्यमाणानाम् ब्यापाय मोहमहाराजमासादित
सुरायुरनरे दसमूद्दे श्रणताह्िसरोरुहामू इड
मूत्यादिमुमुस हयेंले चन्दनवालादिसतीमतल्सिकाभिश्च समक्ति समुपा
स्पमानानामु _ श्रीवध॑मानस्वामिनामन्तेदासी _ भ्रभिगतजीवाजीवा
दितत्व व्यवसितद्रव्यघटकसुन्दररहस्य... विरचितब्रताब्र विवेचन”
है... रागवान सुराशि इति बतुप्रत्यय 1
९. मैचिकी तूत्तमा गोधु' इति हैम ।
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