न्यायिक क्रान्ति के बदलते आयाम | Nyayik Kranti Ke Badalte Aayam
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
725
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ प्रस्तुति।15
भारतीय न्याय-प्रणाली व न्यायपालिका का विश्लेपण, विवरण व समाल-
चनायुक्त इतिहास व चिस्तन, बकाया वाद व विलंब संबंधी श्र कगणित का विस्तृत
चित्रण इस पुष्प की प्रमुख पंखुड़िया है--भतः प्रथम चिन्तन में जो नाम श्राये उनमें
“भारतीय स्याय-प्रणाली दशा, दिशा एवं दृष्टि”, “भारतीय न्याय-प्रसाली-उत्तम-
उत्कर्ष,” “मारत के न्याययंत्र की प्रगति-मात्ा”, “न्याय-पद्धति की युग यात्रा,”
*न्यायनव्यवस्था : स्थिति व. संभावनाएं” उल्लेखनीय हैं परन्तु इनको परम्परागत
शैली का धोतक समक मेरा मानस भपना न सका ।
भगवती द्वारा मुख्य न्यायाधिपति की शपथ के साथ “भगवती «काल के
परिवेश में यह सुकाया गया कि इस पोधी में चूंकि भगवती श्रय्यर शैती व
“सामाजिक न्याय को पर्यायवाची संवेदनशीलता को प्रशासित किया गया है व
प्ररणा ली गई है, अतः इसे “महर्षि मनु से मसीहा भगवती”, “विक्रमादित्य से
भगवती”, “भगवती न्यायालय की चुनौतियां” से नामाकित किया जावे । कुछ
कणों मे यह शीर्पक लुभावने बे झाक्पक लगे, परन्तु गम्भीर व गहरे चिस्तन पर
हगा कि यह व्यक्तिगत महत्त्व देते की दरवारी शैली होगी, जो मेरे मौलिक
चिन्तन के श्रनुकूल नहीं ।
एक चिन्तन न्यायिक तुला व झघी न्याय देवी से संबंधित शीर्पेक पर
मिा । पर न्याय तुला के पीछे “न्याय की देवी श्रब तो आ्रांखे खोल”, “न्याय की देवी
रिसूप अनेक” शीपेक भी विचारणीय रहे, परन्तु इन्हें सामाजिक वे सराहनीय
नरणीति करने पर भी, पुष्प की समस्त पंड़ियों को दिग्दशित करने के लिए सक्षम
1 पाया ।
भूमिका लिखते-लिखते भारतीय राजर्नतिक क्षितिज पर “21वीं सदी” की
गोर-शोर से तैयारी की जा रही है व प्रधानमस्त्री का यहू मूलर्मत्र हो चुका है,
पहुं झोर इसके चर्चे हैं । श्रतः स्वाभाविक था कि कुछ विचार श्राये कि नामकरण
में इसे महत्त्व दिया जावे । प्रथम श्रच्याय इसी को इंगित करता है । इस हेतु
*21वी सदी व न्यापिक क्रान्ति,”
“न्याधिक क्रान्ति 21वीं सदी की श्रोर”,
“न्यायिक क्रान्ति के बदलते श्रायाम व 21वीं सदी”,
“प्याय, 21वीं सदी की झोर”, “सामाजिक न्यायतंत्र, 21वीं सदी,”
भी विचारणीय बने । श्रस्ततोगत्वा यह भी. सिद्धान्ततया स्वीकारने पर
भी प्रधानमस्त्री की न्यायिक सेना का कड़ा लहराने की परिकल्पना से श्रधिक
मणावित न लगा । जेसा कि डूले ने भ्मरोकी न्यायपालिका के लिए कहा है, श्रतः
इसे भी परिपूर्ण न समझा गया 1 रे
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