जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश भाग - 1 | Jain Sahitya Aur Itihas Par Vishad Parkash Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
752
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महेवोर और उनका समय डर
जैसा कि श्रीपुज्यपादाचार्यके निम्न वॉक्योंसे प्रकट है :---
भाम-पुर-खेट-कर्वटे-मेट स्व-घोषाकरान प्रवि जहार ।
उमेस्तपोविधानैद दशवर्षारयमरपूज्य १नो
ऋजकूलायास्तीरे शालद्रमसंश्रिते शिलापड़े ।
अपराह्न पष्ठेनास्थितस्य खलु जम्भकायामे ॥११॥
वैशाखसितदशम्यां हस्तोत्तरमध्यमाश्रिते चन्द्र ।
चएकश्नेण्यारूटस्योत्पनन॑ केवलज्ञानमू ॥ १९ ॥|
-निर्वाणभक्ति
इस तरह घोर तपर्चरण तथा ध्यानाग्नि-द्वारा, ज्ञानावरणीय ददनावरणीय
सोहनीय श्रीर श्रत्तराय नामके घातिकमं-मलको दग्ध करके, महावीर भगवानने
जब अपने श्रात्मामें ज्ञान, दर्सन, सुख शोर वीयें नामके स्वाभाविक गुणोंका पूरा
विकास श्रथवा उनका पूर्ण रूपसे भविर्भाव कर लिया श्र झाप श्रनुपम शुद्धि,
शक्ति तथा शान्तिकी पराकाण्ठाकों पहुँच गये, श्रथवा यों कहिये कि श्रापको
स्वात्मोगलब्बिरूप “सिद्धि' की प्रासि हो गई, तब श्रापने सब प्रकारसे समर्थ
होकर ब्रह्मसथका नेतृत्व ग्रहण किया श्रौर संसारी जीवोंको सन्मार्गका उपदेश
देनेके खिये--उन्हें उनकी भूल सुकाने, बन्बनमुक्त करने, ऊपर उठाने श्रौर
उनके दु:ख मिटानेके लिये--प्रपना विहार प्रारम्भ किया । दूसरे काब्दोंमें कहना
चाहिये कि लोझहित-साधवाका जो असाधारण विचार श्रापका वर्षो चल रहा
था और जिसका गहरा संस्कार जन्मजन्मान्तरोंसे श्रापके झात्मामें पड़ा हुमा था
कलह भब संपूखं रुकावटोंके दूर हो जाने पर स्वत: कायेमें परिणात हो गया ।
विह्मार करते हुए श्राप जिस स्थान पर पहुँचते थे श्रौर वहाँ आपके उपदेयके
लिए डरे महती सभा जुड़ती थी श्रौर जिसे जेनसाहित्यमें समवसरण' नामसे
ममइय छदुमत्यत्तं बारसवासारि पंचमासे य ।
पण्णारसाखि दिखाणि य तिरयणंसुद्धो महावीरों ।1१॥।
उंजुझुलणदीतीरे जंभियगामे वहिं सिलावट् ।
खटु खादावंतों भवरष्दे पायछायाएं ॥२॥
वइसाहजोष्हुपक्खे दसंमीए खवगसेढिमारुदुढ़ो ।
हंतूरी घाइकेम्म॑ केवलणाणं समावण्णो ॥। दे।
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