हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग | Hindi Ke Vikas Men Apabhransh Ka Yog

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Hindi Ke Vikas Men Apabhransh Ka Yog  by नामवर सिंह - Namvar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४ 2) आपने यूसंबर्ती शेखकों की उन घारशाशों की आलोधना भी की हैं जी उसे झवन्तोबपद जान -पढ़ी हैं । युस्तक के श्रन्त में उन्होंने कुछ परिशिष्ट भी गोद दिये हैं थो पाठकों के लिए उपयोगी हैं । मैं उतकी इस उत्तम कृति के लिए .उसे बचाई देता हूँ भर माषाशाहियों विशेषतः हिंदी, जो स्वेतंत्र भारत की राष्ट्र-भाषा का उचित पद भास कर चुकी है, के. विद्वानों को इसे पढ़ने के लिए 'आाद्ान करता हूँ । दिन्दू विश्व विद्यालय, बनारस ही पी० एल० वेद १६ फरवरी, १६४९




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