लेनिन और भारतीय साहित्य {लेख संग्रह} | Lenin Aur Bharatiya Sahitya {Lekh Sangrah}

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नागार्जुन - Nagaarjun

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नामवर सिंह - Namvar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सैनिन और भारत ् दिया गया । बाती दोनों राजगुर और सुखदेव को वही ले आया गया । “तब तर मुझे यह सही मालूम था कि यह कंदियों के साथ मेरी आखिरी मुसाइयत होगी जौर उन्हे अगले दिन सुवह के बजाय दो ही घटे बाद फासी पर चढ़ा दिया जायेगा ।” “लिविन वातावरण में कुद्ध रहस्यमय वात थी, सानों कोई अपरोवुन मडरा रहा हो । उस दिन सभी बंदी जपनो-मपनी कोठरियों में थे और उनसे रोज थी मेहनत भी नहीं वरायी जा रही थी । यह बहुत ही असा- घारण वात थी ।” “'भगनासिह ने जो छिताव सगायी थी वह मैंने उन्हे दी । विताव देखकर बह बहुत सूग हुए । मेरे हाथ से विताव लेने हुए बोले, मैं इसे रात में हो सत्म कर दूगा इससे पहने कि' “उन्हे नहीं मालूम था वि वह किताव खत्म नहीं कर पायेगे। वाहर आकर मुझे, मालूम हुआ कि उन्हे उसी दिन थाम को फासी दी जानेवाली है--अभी .! मुझे, उनबी दूसरी चीजों के साथ यह किताब वापस मिल गयी--- भगर्तामिद्व ने जेल के अधिकारियों से कह दिया था कि सब चीजें मुझे दे दी जापें-? बोरेंद्र सिधु की पुस्तक के अनुसार जेल के एक वाइंर ने भगतमिह के जीवन के अतिम क्षणों का वर्णन एस प्रकार किया है -- “उसके पास भिभवने थे लिए वोई समय नहीं पा. “वह अपने सवसे गहरे मित्र से मिल रहा था। बह लैनिन वी जीवनी पढ़ रहा था जो उसके दोस्त प्राथणनाय उसे दे गय थे। उसने बुछ ही पन्‍ने पढ़ें थे कि कोठरी का दरवाजा ग्युला । जेल का अफसर अपनी रौबीली वर्दी मे वहा खड़ा था, “सरदारजी, आपकी फासी का हुबम, हैयार हो जाइए ” भगतमिह के दाहिने हाथ में विताद थी । किनाव पर से नजरें हडाये बिना ही उसने अपना वाया हाथ वढा दिया और वहा, “एक ऋ्रानिवारी दूसरे शानतिकारो से मिल रहा है,” फिर कुछ लाइने और पढने के बाद उसने किलाय बद वर दो और वहा, “आइये घ्लें * * उपर्युवन उद्धरण टीवा-टि्पणी मे परे है। दिद्व के दलिदानियों वो सम्मिलित करुणा और आस्था इन पवितयों में समायी हुई है । गदलिए न्रदिरोमणि पू० १०१-१०२1




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