हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग | Hindi Ke Vikas Men Apabhransh Ka Yog

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Hindi Ke Vikas Men Apabhransh Ka Yog by नामवर सिंह - Namvar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) जपने शूर्॑षती शेखको की ठन वारणश्रो की आलोधना भी की हैं जी उठे श्रवन्तोकयद्‌ जान -पढ़ी हैं । युस्तक के श्रन्त में उन्होंने कुछ परिशिष्ट भी गोद दिये हैं थो पाठकों के लिए उपयोगी हैं । मैं उतकी इस उत्तम कृति के लिए .उसे बचाई देता हूँ भर माषाशाहियों विशेषतः हिंदी, जो स्वतंत्र भारत की राष्टू-माक्षा का उचित पद भास कर चुकी है, के. विद्वानों को इसे पढ़ने के लिए 'आाद्ान करता हूँ । दिन्दू विश्व विद्यालय, बनारस } पी० एल० वैय १६ फरवरी, १६५२




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