गल्प - गुच्छ २ | Galp - Guchchh 2
श्रेणी : लोककथा / Folklore, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बच्चा | थे
नाव नथो, मैदान में एक भी श्रादमी न था । दूसरे किनारे
पर, काशी के ऊँचे ऊँचे मकानों पर पड़ रही झस्त हो रहे सूये
की झाभा बादल के बीच से देख पड़ी । चारों ओर सन्नाटा
था। इसी बीच में बच्चे ने सहसा एक श्रार उँगली उठाकर
कहा--'“'चन्न, फू !”?
थाड़ी दो दूर पर, पानी श्रार कीचड़ से भरी भ्रूमि पर, एक
बड़ा भारी कदस्ब का पेड़ था । उसकी एक निचली डाल में
फूल खिले हुए थे। वह बालक उधर दही देखकर उंगली का
इशारा कर रहा था । दो चार दिन हुए, रामचरन ने लकड़ी
के टुकड़ों में कदम्ब के फूल लगाकर एक छोटी सी गाड़ी बना
दी थी । रस्सी बाँध कर उस गाड़ी को खींचने में वह बच्चा
ऐसा ,खुश हुआ कि उस दिन रामचरन को लगाम पहन कर
घाड़ा नहीं बनना पड़ा । घोड़े से वह एकदम सइंस के पद
यर पहुँच गया ।
कीचड़ मैंकाकर फूल लेने जाने को रामचरन का जी न
चाहा । जल्दो से उसने दूसरी श्रार उँगली उठाकर बच्चे को
बहलाने की नियत से कहा--“'देखे देखे वद्द--यह देखे
च्ड़िया--वह उड़ गई! श्रारी चिड़िया झा झा ।”” इस प्रकार
लगातार विचित्र कलरबव करते करते ज़ोर से बह गाड़ी
ठेलने लगा ।
लेकिन झागे चलकर जिसके जज होने की सम्भावना छा
उस बच्चे को इस तरह साधारण उपाय से बहलाने की चेष्टा
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