शरत् - साहित्य शेप प्रश्न | Sharat Sahity Shep Prashn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेप पा श्शु सामकर, इस यातकी संम्भावनासे उनवा मन यहुत उदिग्न हो उठा कि घरम औरतें आ गई है, वे मी परदेशी ओटसे गाना सुनगी, चेहरा देखेंगी, भर बह उद मी प्रीतिवर रूगेगा। वे बोले, “गाना तो सुना था मधु बाबूका 1 यह गाना आप लोगोकों चाहे जितना भी मीठा रगा दो, पर इसमें प्राण नहीं हैं !'” सब चुप हो रहे । कारण, एक तो अशात मधु याजूका गाना र्सीने सुता नहीं था और दूसरे गानेम प्राण रदने न रहनेकी सुनिर्दि्ट धारणा अशयकी तरद और किसीफे निकट स्पष्ट नहीं थी । शुण मुग्ब आयु बायू उत्तेजनावदा तक करनेको तैयार थे, पर अपिनादाने ऑखोरे दशारेसे उर्ददे येव दिया ! समीतद्वीके दिपयमे आलोचना होने रूसी । कय, फिसने, कहाँ, वैसा गाना सुना था, उसवी व्याख्या और चर्णन किया जाने लगा । बातों दी यार्तीमें रात बदने रगी । भीतरसे सबर आई कि औरतें सम जीम चुरी, और उर्दे घर भेजा जा रा है । दद्ध सम जज लाइय सत्त दो जानेकी वजहसे धर चल दिये और अजीण रोगग्रस्त मुन्सिफ साइय भी जल खीर पान मान मुँहमे देकर उनमें साथी हुए । रह गया सिफ पोरेसर-दल । ममश उसकी भी जीमनेगी घुलाइट हुद । ऊपर खुरे यसमदेम आसन पिज्राकर्‌ पत्ते रूगाई गद हैं, समरे साथ आशु यावू भी बैठ गये! मनोरमा औरतेंगी तरफसे छुद्दी पाकर देख-रेसके लिए, आ पहुँची । दिवनाययों भूगग भड़े ही दो, पर ग्यानेमें रुखि नहीं थी, वह फिना साये ही घर लौट ो तैयार था, मगर मनोरमा। किसी भी तरह उस छोड़ा नहीं, कई सुकर सपके साथ दिठा दिया | आयोजन व आओदमियों जैसा दी था, इस बातका मिस्तारके साथ वर्णन करके कि रेलमें जाते यक्त दर्डलामें शिवनाय वे साथ कैम आग वायूका पर्विय हुआ ओर मार दो दिनयी याठचीतसे सैछे चद्द परिचय घनिष्ठ जात्मीयंता्मे परिणत हो गया, आशु चामूपे जपना दृतित्व धमाणित करनेरे लिए कहा, “और, सयसे बतरर खुची है मरे बायाकी | इनके गरेकी अस्टुट मामूली-री शुजन प्यनिसे ही मैं निश्चित समझ गया कि कोड गुनी सुस्प, असाधारण “यक्ति ई ।” इतना कददकर उद्दोने कयाको सानीने तीरपर डुर्गवर कद्दा, “वर्यों वेटी, कहा नहीं था तुमसे, शियनाथ बाबू भारी शुणी आदमी ई ( बद्दा नहां या मणि, इनके साथ जान पहचान होना जीयनस एक




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