शरत साहित्य | Sharat Sahitya

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Sharat Sahitya  by धन्यकुमार जैन - Dhanyakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चाम्डनेकी बेरी ७ कहा था क्रि असन, वजीफेके रोमको गगाजीमे बहा दो ओर घरे लढ़केकी तरह घर बटो । विल्यत मत जाओ ¡ पर, उनकी वात क्या सुनी उसने ¶ उल्टा विलयत जति बखत उनका मजाक उड़ा गया | बेला, यदि विलायत जानेसे जात जाती है, तो जाय, मेरे छिए वही अच्छा । परन्तु, गोलोक चटरजीके समान मेद-बकरियाँ विठायत भेजकर पैसा पैदा करना मेरा काम नहीं, और न समाजके सिरपर सवार होकर लोर्गेंकी जात मरना ही मेरा पेशा है। उफू, मैं अगर उस चखत होती तो मरे झाट्टके छोकरेका मुँद सीधा कर देती । जो गोठोक चटरजी मात खाकर गोबर सुँह-हाथ धोति हैं, उनको जो है सो-- जगद्धात्रीने विनीत कठसे कहना चाहा--पर अरुन तो कभी किसीकी निन्‍्दा नहीं करता मौसी ए “तो कया मैं झूठ बोल रद हूँ ? और कया चटरजी भइया--” ^“ नर्द न्दी, वे क्यो इट बोल्ने लगे | पर लोग भी तो बहुत-सी बातें बढ़ा न्वदाकर कह आति रै | ” * तेरी तो बस एक ही बात है जग्गो ! लोगॉको खा-पीकर कुछ काम थोड़े दी है जो गये दंगे बाते बढ़ा चदाकर कदने,--अच्छा, बह निरायत जाकर ही कौन-सी दिगबिजै कर लाया बता * सीख आया किसानोकी विद्या । सुनकर हँसी आती है । चकरवरती दै ओर चदि जो हो, है तो बाम्हनका दी लढका । देसमे क्या किसान थे नहीं * अब कोई पूछे उससे, क्या तू हक जोतने जायगा खेतेंमिं ? राम राम, उसे मोत भी न आई ! ” रासमणिके कठस्वरका तीत्र सौरम क्रमशः दूर तक व्याप्त होनेकी तैयारी कर रदा था, गन्ध पाकर कहीं मुदछेकी समझदार मधुमक्खियेंका झुड न आ पहुँचे, इस डरसे जगद्धात्रीने धीरेसे कद्दा--खद़ी खड़ी क्यों बतला रही दो भोसी, चलो रा, भीतर चलकर बैठो न । * नहीं नहीं, बहुत अबेर हो गई हे, अब बेहूँगी नहीं । बिटियाको भी नह- चना है। दूठेकी छुकढ़िया भाग गई न १ » क “ हूँ दादी, तुम जब बाते कर रहीं थीं, तभी चली गई । पर उसने मुझे छुमा नद्दीं--” ^“ किर “ नहीं कद रही है हरामजादी ।---पर जग्गो, तुझसे बिनती करती हूँ बेटी, मुद्छेमें दूले-बाग्दी मत बसा । जमाईसे भी कहना | ”




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