रवीन्द्र साहित्य भाग 7 | Ravindar Sahitya Bhag 7

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Ravindar Sahitya Bhag 7  by धन्यकुमार जैन - Dhanyakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चदला ; कहानी २१ मुकुन्दलालके जमानेमें दोवाव गोरोशकर आसपासके जमींदारोंको जमीनपर जबरदस्ती हस्तक्षेप करनेमें नहीं सकुचाते थे। और इस तरहसे उन्होंने दूसरोंको काफी जमीन हड़प लो थी। पर अम्बिकांचरण कभो भो ऐसे काममें हाथ नदीं डालता । और सामला-मुकदमेको नोबत भा जाती तो वह यथासाध्य आपसमें ससम्हौता कर लेनेकी कोशिश करता । बामाचरणने इसी वातपर सालिकका ध्यान खींचा । उसने साफ-साफ समम्का दिया कि “अम्बिका बाबू जहर दूसरी तरफसे रिखित खाकर मालिकक्रा एेसा नुकसान किया करते हैं खद वामां चरणको भी ऐसा ही विज्वास है, नितके हाथमें सब तरहका अखितियार है वह वीच रिखित न खाय ईस बातो वह मार डालनेपर भी कबूल नहीं कर सकता । इस तरद्द भीतर-द्वी-भोतर नाना मुखोसे फू क पाकर विनोदकों सशय-शिखा कंसश- ऊँचो होने लगी , किन्तु वह प्रत्यक्षरूपसे उसका कुछ प्रतीकार करनेकी हिम्मत न कर सका। एक तो आँखोंका लिहाज ओर दूसरे यह डर कि सारी बातोंका जानकार अम्बिका कद्दीं उसका गहरा अनिष्ट न कर डाले । अन्तर नयनताराने पतिको इस कायरतासे जल-शुवकर, विनोदकी गर-जानकारोमें, एक दिन अम्विकाचरणकों बुलाकर परदेकी ओटमेंसे क दिया--“तुम्हें अब नद्दीं रखा जायगा। वामाचरणकों सब समम्काकर तुम चले जाओ 1 | अम्बिका आभाससे इस वातकों पहलेसे द्दी समझ गया था कि उसके बारेमें विनोदके दरवारमें आन्दोलन शुरू हो गया है, इसलिए नयनताराकी वातपर्‌ उसे विशेष आश्चर्य नहीं हुआ। उसने उसी वक्त विनोदीलछालके पास जाकर पूछा---“आप क्या मुझे कामसे छुट्री देना चाहते हैं ?” , विनोदने अत्यन्त चचल द्ोकर कहा--“नहीं तो |? अम्बिकाने फिर पूछा--“मेरे ऊपर सन्देह करनेका क्या आपको कोई कारण मिला है 2 विनोद्‌ एकाएक अत्यन्त लज्जित-सा होकर बोला--“नहीं तो, बिलकुल नहीं [7 अम्बिकाचरण नयनतारा-वाली घटनाका जिक्र न करके चुपचाप आफिस लौट




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