महाकवि अश्वघोष | Mahakavi Ashwghosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हरिदत्त शास्त्री - Haridatt Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हे
श्रद्धध सम्पादक जी ने उत्तर दिया कि “तुम्हें क्या मालूम कि प्रूफ पढ़ते उमू १०
साल घट गई, संस्कृव का घूफ पढ़ कर देता हूं, पर अशुद्धियाँ फिर भी बेसे ही नजर
पड़ जाती है जैसे सफेद चादर पर खटमत्त! प्रूफ पड़ते पढ़ते मेरी आंखों का तेल
श्ौर पीठ के! कचूमर निकल गया, हां यह हो सकता है कि माँ के पेट से बच्चा सही
सलामत बाहर लिकले आए पर प्रेस के पेट से पुस्तक का सही निकलना कही कठिन
है” । यह बात यहां मौके मुहाल के बिलकुल मुताबिक बे मौजू' साबित हो रही है ।
श्री भाई दयामनारायण जी कपूर मालिक साहित्य निकेतन ने पुस्तक के प्रकाशन में
बड़ी दिलचस्पी ली 1 जिससे मुझे इस नई बात का पा लगा कि वे एक कुशल
दुकनदार ही नहीं वल्कि एक सहुदय कवि हृदय भी हैं ।, मेड़ी अनुपस्थिति ,मैं ने काम
आगे बढ़ाते रहे, नहीं तो न मालूम कितनी अ्रशुद्धियां रह जाती । इस पुस्तक का
आदि का पाँचवाँ पृष्ठ तों बहुत ही अशुद्ध छपा है उसकी आठवी प क्ति का पथ
निम्नलिखित प्रकार पढ़ता चाहिए: --
व्यवसाय द्वितीयोज्ध शादइलास्तीण शूवलमू ॥
सोध्यवत्थ सूल॑ अययी वोधाय कृत निश्रयः 1!
अन्य स्थानों में ऐसी भूल नहीं हुई है । सात्रा बिन्दु, और बिसर्ग की गलतिण
पाठक स्वयं ही सुधार लेंगे । पष्ठ आठ पर पहुले पद्य का पता सौ० २६२ समशिए।
दूसरे पद्च का सौ० ९३४ हैं तथा 'पालनाच्च' एवं “श्रमीमयत.' इस प्रकार पवर्ग
प्रथमाक्षर घटित पाठ ठीक हैं भ्रस्तस्था अथमाक्षर घटित नहीं। २३६ में भी 'झमीमयत्
कीं ही झावृत्ति है चारों जगह जगह 'यजभूमि का सापना' निरुद्वि्न बनाना, (निर्माण
करना, सोम को पात्र में नाप॑ता, व मारना अर्थ है। सौ० २/१६वाँ पथ इस मुक।र है;
गुरूभिविधिवत्ू काले. सौम्य: . सीसमशीमयत् 1 - .
तपसा तेजसाचेव ट्विषतू सैन्य मधीमयत् ।।र1 २६
पुस्तक के अन्त में स्फुट पदों अर्थात फूदरर परद्यों का भी संकलन किया हर
जिसका उद्ददय केवल ततत॒दू दूं विषय से परिचय कराना है। उन संकलित प्यों में
सबके अर्थ नहीं लिखे हैं कुछ को सरल समभकर छोड़ दिया तथा किन्हीं का भर्श
करने से ग्रन्थ बैपुल्ये का मय लगता रहा । झ्राशा पाठकवून्द इन पदों का झर्थ विचार
से स्वयं लगाने की कपा करेंगे । इस प्रकार यह अरवघोष के काव्यों का शौपररिष्टिक
बेवेचन छात्रों का दपकारक होता यह बिस्तास है. 1, हों सकता है इस क्िचाय सरणि
से, किसी को पैमत्य हो किन्तू यह भी विचाद की सरनि है इसमें तो किसी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...