तीर्थकर चरित्र भाग 2 | Tirthkar Charitr Bhaag 2
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
525
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)च तीर्यकर चरित्र
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महापुरुषों को कि जो पापकर्मों का त्याग कर कें धर्म का आचरण करते हैं । ब्रह्मचयें का
पालन करके कामरूपी कीचड़ से पृथक् रहते हैं इस प्रकार पदचाताप कर रहे
थे कि आकाश से बिजली गिरी और राजा तथा वनमाला दोनों मृत्यु को प्राप्त हो गए।
परचाताप करते हुए शुभ भावों में मर कर वे दोनों हरिवपष क्षेत्र में युगल मनुष्य के रूप
में जन्मे । माता-पिता नें पुत्र का नाम ' हरि” और पुत्री का नाम ' हरिणी ' रखा । पूर्व
स्नेह के कारण दोनों सुखोपभोग करने लगे ।
राजा ओर वतमसाला की मृत्यु का हाल जान कर वीरकुर्बिद स्वस्थ हुआ और
अज्ञान तप करने छगा। वाल-तप के प्रभाव से वह प्रथम स्वर्ग में किल्विषी देव हुआ ।
अपने विभंगज्ञान से उसने हरि और हुरिणी को देखा । उन्हें सुलोपभोग करते देख कर
उसका क्रोध भड़क उठा । वहूं तत्काल हरिवर्ष क्षेत्र में आया और उन युगल दम्पतति को नष्ट
करने का विचार करने लगा । किन्तु उसे विचार हुआ कि--' इनकी भायु परिपूर्ण है ।
यदि यहां मरे; तो स्वर्ग में उत्पन्न हो कर सुख भोग ही करेंगे । इससे मेरा उद्देश्य सिद्ध नहीं
होगा । में इन्हें दुखी देखना चाहता हूं । इसलिये ऐसा उपाय कहूँ कि ये यहाँ से मर कर
नरक में उत्पन्न हो कर दुःखी बने । इस प्रकार विचार करके उस देव ने उस युगल का अप-
हरण किया, साथ में कलपवृक्ष भी ले लिये और उन्हें इस भरत क्षेत्र की चम्पापुरी में
लाया । उप समय वहां का इक्ष्वाकु बंध का चन्द्रकीति राजा, सिश्संतान मर गया था ।
राज्य के मन्त्रीगण, राज्य के उत्तराधिकारी के प्रइ्न पर विचार कर रहे थे । उस समय
चहू देव उनके सामने आकाश में प्रकट हो कर बोला; --
प्रधानों और सामन्तों ! तुम राज्याधिकारी के लिए चिन्ता कर रहे हो । में
तुम्हारी चिन्ता दूर करने के लिए एक योग्य मनुष्य को भोगभूमि से लाया हूँ । वह ' हरि
नाम का मनुष्य तुम्हारा राजा और हरिणी रानी होगी । उनके खाने के लिए में कल्पवक्ष
भी लाया हूं । यह युगल तुम्हारे यहां का अन्न नहीं खाएगा । इनके लिए इन वक्षों के
फच ही ठीक रहेंगे । इन फलों के साथ इन्हें पशुनपक्षियों का मांस भी खिलाया करना
गौर मदिरा भी पिलाना । इससे ये संतुप्ठ रहेंगे ओर तुम्हारा राज्य यधे्छ चलता रहेगा ।
युगल को मांस-मक्षी ओर मदिरा-पान करने वाला बना कर--उनको पतन के
गत में गिरा कर, नरक में भेजने का देव का उद्देश्य था । इसलिए वह ऐसी व्यवस्था कर के
पा गया । देव के उपराकत वचनों का मन्दियों और सामन्तों ने आदर किया । उन्होंने
उस यगल को रथ में घिठा कर उपवन में से राज्यमवन में लाये और हू का राज्या-
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