आधुनिक तर्कशास्त्र की भूमिका | Aadhunik Tarkshastra Ki Bhumika

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Book Image : आधुनिक तर्कशास्त्र की भूमिका  - Aadhunik Tarkshastra Ki Bhumika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ आधुनिक तकंशास्त्र की भूमिका (शि००७8०ा५४ एह007) कहते है । जब निप्क्प॑ आधार वाक्यो में निहित रहता है तो तक को निगमतात्मक (12660 01९८) कहते है, जब आधार वाक्य निष्कष को सिद्ध करने के लिये पर्याप्त नहीं होते, लेकिन फिर भी निष्कर्ष के पक्ष में प्रमाण का बुछ बल रखते है तो तक॑ को आगमनिक (001.000६6) कहते हैं । भागमनिक तक में आधार वाक्य सत्य हो सकते है फिर भी निष्कर्ष असत्य, इस प्रकार प्रमाण कितने भी सबल हैं पर अनि्णथात्मक (10007101ए81४6), विवादग्रस्त । इस प्रकार के तक का अध्ययन हमलोग वाद में करेंगे । निगमनिक तर्क मे यह नहीं हो सकता कि आधार वाक्य सत्य हो और निष्कर्ष असत्य, अत ऐसे स्थल पर प्रमाण को यथार्थेत निर्णयार्मक कहते हैं । अपने निष्कर्ष की पुष्टि के लिये जिन आधार वाक्यो की आवश्यकता पड़ती है और जिन्हें चिंतनोपरात नि सकोच स्वीकार कर लेना. चाहिये, साधारण बाद-विवाद में हम प्राय' उन सबको नहीं कहते, इससे भी कम हमलोग ठीक पहचान कर पाते हैं कि निष्कर्ष की पुष्टि के लिये श्राधार वाक्य क्यो पर्याप्त होते है (जब वे पर्याप्त है) । व्यवहार में हमारे तक बहुधा वहुत अधिक सभिप्त रहते है, स्वत स्पष्ट अथवा स्वेमान्य होने के कारण हमलोग भाधार वाक्यो को छोड देते है । हमारे अधिकाश प्रयोजनो के लिये यह रीति काफी अच्छी है तथा असहूय लदे-लबे कथनों से बचने के लिये इसकी और भी आवश्यकता पड़ती है । फिर भी यह निरापद नही है, क्योकि हो सकता है कि तक की वैधता किसी ऐसे अवब्यक्त या अस्पष्ट आधार वाक्य पर आश्रित हो जिसे स्पष्ट कर देने के बाद न माना जाय । भागे हमलोग देखेंगे कि किस प्रकार आधार वाक्यो को छोडना हेत्वामासिक तकों का सामान्य कारण है । ३. चेधता श्रौर सत्य हमने भभी एक वाक्याश का व्यवहार किया है 'वैधता और सत्य ।' यदि आधार घाक्यों की सत्यता निगमन की सत्यता को अनिवाये कर दे तो तर्क वैध है, यह कहमा समयुल्य है कि निगमन श्रसत्य है तो आधार वाक्य सत्य नहीं हो सकते, या, दूसरे शब्दों में, तर्कातुसार आधार वाक्यों में निगमन निहित है । अभी हमने वैध तक में निगमन तथा श्राधार वाक्यों के बीच के सबध को प्रकट करने के लिये तीन बैकल्पिक श्रभिव्यजनायें दी है । ध्यान देने की बात है कि हम इन अभिव्यजनाओों की परिभाषा नही करते, केवल मान लेते हैं कि इनमें से कम-से-कम किसी एक को पाढक समभता है--जैसे, निगमन असत्य है तो आधार वाक्य सत्य नहीं हो सकते,




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