बिन्दोका लल्ला | Bindoka Lalla

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Bindoka Lalla by धन्यकुमार जैन - Dhanyakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घिन्दोफा लल्ला श्डः दिए पोशाक छॉट रही थी । आज बढ चावकि साथ कैसी बने सांदमी सुवक्किसके घर न्योता जीमने जायगा । जिन्दोने बिना मुँद उठाये ही जवाब दिया, कया बताऊँ नीजी है” उसका मिजाज जरा अप्रसन्त था । श्रन्नपूर्णा रंग-विरेंगी तरद-तरदकी पोशाक देखरुर देग रद गई थी, दसीसे वद उसके चेद्रेशा भाव न ताढ सकी । कुछ देर तक चुपचाप देखती रद्दी, फिर बोली, “ये कया भव लस्ला+ की पोदारे हूं है” बिदुने कहा, हाँ ।” अन्नपूरनि कहा, “कितने रुपये दू फिजूल बढाया करती है । इनमें एक- की फीमतथे गरीबोंकि मदों एक बच्चेके साल-मरके कपडे-लति बन सकते हैं ।” बिन्दु नाखुश हो गई । फिरमी स्वाभाविक भाविप्ते बोली, “हो, सो बन सकते हैं । मगर गरीबों शऔर बडे-शरादमियों में थोड़ानबहुत फ्रके रहेगा ही, इसके ठिए दुख करनेसे क्या होगा जीगी 2 अननपूरणाने कहा, “सो दोंगे बढ़े आदमी, पर तेरी तो सब बातोंमें ज्यादती दोती दें ।”” पिन्दुने मुँद उठारुर कद, “क्या रूदने आई थीं, सो ही झद न जीगी, भी सु फुरसत नहीं है ।” *ुमे फुररत कब रदती दि भला 1” कदर जिठानी गुस्मा द्वोक चढ्ी' गई । मैरों लल्लाको युन्ाने गया था । बढ घरटे-मर बाद उसे दूँदकर ले झाया 1 षिस्हुने पूछा, “कं था अब तक १” अपूल्य चुप रहा । मैरोंने कद्दा, “उस मुदल्लेके किसानोंके लड़कोंके साथ गुल्ली-रंडा खेल, रहे थे ।” इस सेलबे बिन्दोकों बहुत भय था, इध्लिए इस खेंलके लिए उधने मनादी कर दी थी । सुनकर बोली, “गुर्ली दंडा खेलनेको तुम्हसे मना कर दिया या न हू शमूल्य मारे ढरके नीला पढ़ गया, सोला, *'मैं तो खड़ा था, उन लोगोंने जबरदश्ती मुझे” 'जदरदुस्ती तुझे १ अच्छा, अमी तो जा, फिर बताऊँगी ।”कद्कर -मिस्दी उसे कपड़े पहनाने लगी 1 लगभय दो मद्दीने पदले अमूल्य जनेक हुआ या; इसलिए उसने युदी चौंदपर टोपी पहननेमें घोर शापत्ति की । मगर मिन्दों कब छोड़नेवाली प्च्ि जः




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