बिन्दोका लल्ला | Bindoka Lalla
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
167
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घिन्दोफा लल्ला श्डः
दिए पोशाक छॉट रही थी । आज बढ चावकि साथ कैसी बने सांदमी
सुवक्किसके घर न्योता जीमने जायगा । जिन्दोने बिना मुँद उठाये ही जवाब
दिया, कया बताऊँ नीजी है”
उसका मिजाज जरा अप्रसन्त था । श्रन्नपूर्णा रंग-विरेंगी तरद-तरदकी
पोशाक देखरुर देग रद गई थी, दसीसे वद उसके चेद्रेशा भाव न ताढ
सकी । कुछ देर तक चुपचाप देखती रद्दी, फिर बोली, “ये कया भव लस्ला+
की पोदारे हूं है” बिदुने कहा, हाँ ।”
अन्नपूरनि कहा, “कितने रुपये दू फिजूल बढाया करती है । इनमें एक-
की फीमतथे गरीबोंकि मदों एक बच्चेके साल-मरके कपडे-लति बन सकते हैं ।”
बिन्दु नाखुश हो गई । फिरमी स्वाभाविक भाविप्ते बोली, “हो, सो बन
सकते हैं । मगर गरीबों शऔर बडे-शरादमियों में थोड़ानबहुत फ्रके रहेगा ही,
इसके ठिए दुख करनेसे क्या होगा जीगी 2
अननपूरणाने कहा, “सो दोंगे बढ़े आदमी, पर तेरी तो सब बातोंमें
ज्यादती दोती दें ।””
पिन्दुने मुँद उठारुर कद, “क्या रूदने आई थीं, सो ही झद न जीगी,
भी सु फुरसत नहीं है ।”
*ुमे फुररत कब रदती दि भला 1” कदर जिठानी गुस्मा द्वोक चढ्ी'
गई । मैरों लल्लाको युन्ाने गया था । बढ घरटे-मर बाद उसे दूँदकर ले झाया 1
षिस्हुने पूछा, “कं था अब तक १”
अपूल्य चुप रहा ।
मैरोंने कद्दा, “उस मुदल्लेके किसानोंके लड़कोंके साथ गुल्ली-रंडा खेल,
रहे थे ।”
इस सेलबे बिन्दोकों बहुत भय था, इध्लिए इस खेंलके लिए उधने
मनादी कर दी थी । सुनकर बोली, “गुर्ली दंडा खेलनेको तुम्हसे मना कर
दिया या न हू
शमूल्य मारे ढरके नीला पढ़ गया, सोला, *'मैं तो खड़ा था, उन
लोगोंने जबरदश्ती मुझे”
'जदरदुस्ती तुझे १ अच्छा, अमी तो जा, फिर बताऊँगी ।”कद्कर
-मिस्दी उसे कपड़े पहनाने लगी 1
लगभय दो मद्दीने पदले अमूल्य जनेक हुआ या; इसलिए उसने
युदी चौंदपर टोपी पहननेमें घोर शापत्ति की । मगर मिन्दों कब छोड़नेवाली
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