कृष्ण - वियोगिनी एकांकी नाटक | Krishn Viyogani Ekanki Natak

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Krishn Viyogani Ekanki Natak by हरिनारायण मैनवाल - Harinarayan Mainval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूसिका श्५्‌ साथी--भूल से समक्ष बैठा था कि आज़ादी मिल गई हैं। विचार-स्वतन्त्रता श्रौर सत्य की वेडियाँ काट कर गरीबों की श्रावाज वुलन्द करने लगा | हडताल हुई; मिल ठप्प थी, रेलो के चवके जाम हो गयें श्रौर जनता की वुलन्द श्रावाज से आकाश फटने लगा। श्रवसरवादी सफेदपोश घबरा उठे, उनकी कुर्सियाँ उलटने लगी । श्र, मोटे पेंट का पानी सूखने लगा । बस, फिर क्या था, अंग्रेजों जैसा व्मन-चक्र चला, चविचार- स्वतन्त्रता का गला घोट दिया गया श्रौर सत्य * के हाथों में हधकडियों और पँरो मे बेडियॉँ डाल दी गई। .. में एक भयकर राजद्रोही हैं! ताड़-गुड़ “ताड़-गुड़” (१९५०) प्रचार की चीज़ हैं, जिसमे ताइनुड की उपयोगिता, महत्त्व, लाभो को नाटकत्व प्रदान कर दिया गया है। इसका प्रचान पात्र सम्पादक कहता है-- “ताड-गुड-उद्योग अ्रघिक शअ्रन्न उपजाशं श्रान्दोलन का सहायक है । गन्ने की काइत पर ताडगुड़ उद्योग का सीधा प्रभाव यह पड़ेंगा कि किसान खेंतो में गन्ना बोने के




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